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भाषण: मुजफ्फरपुर में

सरकार कितनी अधिक अन्यायी और दमनकारी है। हमारी संस्थाएँ――कांग्रेस, मुस्लिम लीग, और सिख लीग, हमें वह उपाय बता ही चुकी हैं जिससे हम सरकारको सही रास्तेपर ला सकते हैं। यदि हम सचमुच इस आसुरी सरकारसे छुटकारा पाना चाहते हैं तो हमारे पास असहयोग ही एकमात्र अस्त्र हैं। तलवार खींचना न तो हमारा धर्म है और न समय तथा परिस्थितियाँ ही इसके लिए अनुकूल हैं। सभी मानते हैं कि हम तलवारसे न तो स्वराज पा सकते हैं, न इस्लामकी रक्षा कर सकते हैं, न पंजाबके प्रति न्याय करवा सकते हैं और न इस अत्याचारी सरकारसे छुटकारा ही पा सकते हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही इस बातपर एकमत हैं कि इस सबका अन्तिम उपाय असहयोग है। सरकारने वाणिज्यके द्वारा हमारा धन, पंजाबके काण्डके द्वारा हमारा सम्मान और खिलाफतको खतरे में डालकर हमारा धर्म लूट लिया है। यदि हम यह सब मानते हैं, तो सरकारको कोई भी मदद देने या लेने से इनकार करनेके सिवाय हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बच रहता। हम कांग्रेसमें यह फैसला तो पहले ही कर चुके हैं कि हमें सरकारी अदालतोंमें न्याय पानेके लिए नहीं जाना चाहिए।

जो स्कूल अन्यायियोंके द्वारा नियंत्रित होते हैं, उनमें भेजकर हम अपने बच्चोंको न्यायप्रिय नहीं बना सकते। गुलामीकी भावनासे परिचालित स्कूलोंमें अपने बच्चोंको भेजकर हम उन्हें गुलामीकी भावना से मुक्त नहीं कर सकते। यदि मेरे हिन्दू भाई समझते हैं कि वर्तमान दमनकारी सरकार रावण-राज्य जैसी है तो उन्हें आज ही उसके द्वारा नियंत्रित स्कूलोंसे अपने बच्चे हटा लेने चाहिए। हम अपने आदमी कौंसिलोंमें[१] भी नहीं भेजना चाहते, क्योंकि हम जानते हैं कि उनके जरिये हम पंजाब या इस्लामके प्रति न्याय नहीं पा सकते। सरकार कौंसिलोंको अंग्रेजोंसे भर दे, परन्तु हम कौंसिलोंमें जाकर स्वयं अपनी दासताकी जंजीरें और मजबूत नहीं कर सकते। यदि हम कुछ छोटे-छोटे कानून पास करवा लेते हैं या लोगोंको कैदसे रिहा भी करा लेते हैं तो इससे कोई खास बात नहीं बनती। मुख्य बात तो स्वराज्य पाता, पंजाबके प्रति न्याय पाना और खिलाफतके सवालपर समझौता करा सकता है। अंडमान द्वीपके[२] सारे कैदियोंको छोड़ देनेसे भी हमारा लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। हमें सेनाकी भरतीमें अपना नाम दर्ज नहीं कराना चाहिए। हमें स्वदेशी चीजोंका इस्तेमाल करना चाहिए। हमारे हर घरमें चरखा होना जरूरी है। इस सबमें हमारा स्वराज्य निहित है, यही हमारा कर्तव्य है और इसीके द्वारा हम इस्लामको संकटसे बचा सकते हैं। यदि हम तीस करोड़ भारतीय एक स्वरसे कहें कि हम एक भी विदेशी वस्तुका इस्तेमाल नहीं करेंगे तो अंग्रेजोंके भारतमें बने रहनेका कोई कारण ही नहीं बचता। स्वदेशी एक ऐसा धर्म है जिसमें सादगी है, जो हमारी भूख और अन्य जरूरतें रफाकर सकता है और जिसके पालनसे कपड़ेकी कीमतें गिर सकती हैं। यदि कपड़ेके भाव सस्ते करने हों तो [केवल इसीलिए] आपका स्वदेशीकी शपथ लेना आवश्यक है। हिन्दू और मुसलमानोंको परस्पर मित्रता, सद्भावसे रहना चाहिए। गौरक्षा मुसलमानोंको मारकर

  1. विधान परिषद्।
  2. पहले आजन्म कारावासकी सजा पानेवाले अपराधी यहाँ भेजे जाते थे।