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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं की जा सकती। यदि हिन्दू सचमुच गौरक्षा चाहते हैं तो उन्हें इस्लामके लिए आत्मत्याग करना चाहिए। आपको अपना अन्तःकरण शुद्ध रखना चाहिए। पिछले सौ वर्षोंमें आपको ऐसे अवसर कभी नहीं मिले हैं। आज हिन्दुओं और मुसलमानों में परस्पर एकता हो गई है। मैं यह नहीं कहना चाहता कि मुगल बादशाह अत्याचारी नहीं थे, परन्तु वर्तमान सरकार जिस तरह दमन करती है वह दमनके पिछले सभी ब्यौरोंसे बढ़कर है। यदि आज इस्लाम खतरेमें है तो क्या भरोसा है कि कल काशी और प्रयागपर संकट नहीं आयेगा। मक्कारोंपर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। हमारी सरकार हमें कब धोखा देगी, हम कह नहीं सकते। हम सरकारपर कभी भरोसा नहीं कर सकते। हमें अपने आपपर विश्वास होना चाहिए। जबतक हममें फूट है, जबतक हम क्रोधके वशमें हो जाते हैं, जबतक हम अंग्रेजोंके रक्तके प्यासे हैं, तबतक हम भारतको आजाद नहीं करा सकते। मैं तीन चीजें चाहता हूँ: हिन्दू-मुसलमानोंमें एकता; कोधपर संयम और अहिंसात्मक असहयोग।

[अंग्रेजी से]
सर्चलाइट, १७-१२-१९२०

५९. भाषण: बेतियामें[१]

८ दिसम्बर, १९२०

चम्पारन मेरे लिए नया नहीं है। मैं जब भी चम्पारन आता हूँ, तभी मुझे ऐसा लगता है कि भारत में मेरी जन्मभूमि चम्पारन है। मैं चम्पारनके भाइयोंके दुःखसे दुःखी रहता हूँ। यद्यपि आज में दो साल बाद यहाँ आया हूँ, तो भी मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपके दुःखको में कभी नहीं भूला। चम्पारन जिलेका कष्ट, मेरा अपना ही कष्ट है; मैं हमेशा यह याद करता रहा हूँ, और उसको दूर करनेके लिए कुछ-न-कुछ करता भी रहा हूँ। परन्तु उसको दूर करनेके लिए जितना आप कर सकते हैं, उतना तो मैं नहीं कर सकता। इसलिए आज मैं यह बताना चाहता हूँ कि आप अपनी रक्षा खुद ही कैसे कर सकते हैं।

आज में गाँवोंमें होकर आया हूँ। उनकी हालतके बारेमें जो कुछ सुना था, उससे दुखी तो हो ही रहा था, परन्तु वहाँ जो-कुछ हुआ है, उसे आँखोंसे देखकर तो मेरे दुखका पार नहीं रहा। वहीं जो अत्याचार हुए हैं, उनमें मुझे इस बार सरकारकी भूल दिखाई नहीं देती है। मैं जो कुछ देखता हूँ, उसमें बागान मालिकोंकी भूल भी नहीं जान पड़ती। मैं उसमें पुलिस अफसरों, उनके मातहत लोगों और गाँववालोंकी ही भूल पाता हूँ। परन्तु हमें इन लोगोंके विरुद्ध अदालतों में जाकर इन्साफ नहीं लेना है। हम इसका न्याय उन्हीं लोगोंसे लेना चाहते हैं। पुलिसवाले हमारे भाई हैं, उनका फर्ज है कि वे रैयतका रक्षण करें, भक्षण न करें। मैंने जब सुना

  1. महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे उद्धृत।