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भाषण: बेतियामें

कि यहाँके दारोगा और दूसरे पुलिसवाले भाइयोंने गाँवोंमें जाकर अत्याचार किया, तब मुझे अत्यन्त दुख हुआ। वे शायद यह स्वीकार न करें कि उन्होंने ऐसा किया है, परन्तु मुझे लगता है कि गांववालोंने मुझे जो-कुछ सुनाया है, वह सबका-सब झूठ नहीं हो सकता। हममें जो प्रतिष्ठित लोग हैं उनका कर्त्तव्य यह है कि वे उन पुलिसवालोंको समझायें। में यहाँ आये हुए सब पुलिसवालोंसे कहना चाहता हूँ कि आप मेरे भाई हैं, आप गाँववालोंके भी भाई हैं; अतः मैं आपसे कहता हूँ कि सरकार आपको बुरे काम सौंपे तो आपको चाहिए कि आप उन्हें न करें। अगर आप भी हमें अपना भाई समझते हैं, तो आप हमारा काम करें, परन्तु हमें सतायें नहीं। आप सरकारके नौकर हैं, तो सरकार हमारी नौकर है और इसलिए आपका यह फर्ज है कि सरकार आपसे कोई बुरा काम करनेको कहे तो आप उसे न करें। परन्तु मौजूदा मामलेमें तो सरकारने पुलिसको कोई ऐसा हुक्म भी नहीं दिया था कि तुम लोगोंके घर लूटो, या दूसरे गाँववालोंसे उनके घर लुटवाओ, या स्त्रियोंपर जुल्म करो। इसलिए पुलिसने जो-कुछ किया, उसमें सरकारकी कोई गलती नहीं है। पुलिसने अपनी मरजीसे ही जबरदस्ती की है। इसका उपाय यह है कि प्रतिष्ठित सज्जन पुलिसवालोंको जाकर समझायें कि आपकी लाल पगड़ी प्रजाके रक्षणके लिए है, उसके भक्षणके लिए नहीं; आपने जो-कुछ लूटा हो, वह वापस कर दीजिए और यह समझकर कि गाँवके लोग भी आपके भाई हैं, उनके विश्वासपात्र बनिए।

परन्तु इन अत्याचारोंको रोकनेका रास्ता सुझाते हुए मेरी नजरमें पुलिसको समझाने के अलावा एक दूसरा रास्ता भी है। मैं आपसे कहता रहा हूँ कि सब दुःखोंके निवारणका उपाय सत्याग्रह है। हमें इस हुकूमतको मिटाना है फिर भी मैं शान्तिका रास्ता बताता रहा हूँ। परन्तु मैं यह नहीं चाहता कि शान्तिके रास्तेपर चलते हुए भारतकी प्रजा नामर्द बन जाये, पराधीन बन जाये और स्त्रियोंकी रक्षा करनेमें भी असमर्थ रहे। मुझे गांववालोंने क्या बताया, क्या सुनाया?...[१] उन्होंने लुटेरोंके मुकाबले में क्या किया? केवल भाग खड़े हुए। मनमें यह खयाल आया कि क्या भारतके लोग इतने नामर्द बन गये हैं कि अपनी सम्पत्ति और स्त्रियोंकी भी रक्षा नहीं कर सकते? क्या हममें चोरोंसे भी अपनी रक्षा करनेकी ताकत नहीं है? चोर हमें लूटने आयें तो हम भाग खड़े हों, क्या यह सत्याग्रह है? आप अपना धन चोरको लुटा दें, यह दूसरी बात है। लेकिन आपको ऐसा करना इष्ट न हो तो आप उसे समझा सकते हैं और वह न समझे तो उसे मार भी सकते हैं। पुलिस अत्याचार करनेके लिए तैयार हो जाये और आप उसके सामने मरनेके लिए तैयार हो जायें तो मैं कहूँगा कि आप सत्याग्रही हैं, बहादुर हैं। परन्तु आप खड़े-खड़े बेइज्जती सहें, इससे कहीं अच्छा यह है कि आप उन्हें मार भगायें। सत्याग्रहका अर्थ यह नहीं है कि आप स्त्रियोंको छोड़कर भाग जायें, या उन्हें अपने सामने विवस्त्र किये जाते हुए देखें। आपमें से जो लोग लम्बी-लम्बी लाठियाँ लेकर यहाँ आये हैं, उनसे में पूछता

  1. यहाँ महादेवभाईने भाषणका एक अंश छोड़ दिया है और इस अंशके लिए पाठकोंसे अपना पहले भेजा हुआ विवरण देखनेके लिए कहा है।