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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ कि क्या आप इसीको सत्याग्रह समझते हैं? हमारा धर्म यह नहीं सिखाता कि हम नामर्द बनें, अत्याचार सहन करते रहें। हमारा धर्म यह सिखाता है कि अत्याचारीका खून बहानेके बदले अपना खून बहानेको तैयार रहना अच्छा है। हम इस प्रकार अपना खून बहानेको तैयार हो जायें, तब तो हम देवता हैं, परन्तु अन्याय देखकर पलायन करना तो पशुसे भी बदतर हो जाना है। हम पशुसे मनुष्य हुए हैं। पशु-वृत्ति लेकर तो मनुष्य जन्म ही लेता है; ज्यों-ज्यों उसमें समझ आती है, त्यों-त्यों उसमें मनुष्यत्व आने लगता है और ज्यों-ज्यों मनुष्यत्व आता है, त्यों-त्यों हम पशु-बलका आश्रय छोड़कर आत्मबलपर निर्भर रहना सीखते जाते हैं। परन्तु कोई हमारे विरुद्ध पशुबल इस्तेमाल करने आये, तब उसके मुकाबले आत्मबलसे खड़े रहना तो दूर हम उसके सामने से भाग खड़े हों, तब तो हम न पशु रहे और न मनुष्य ही। हम कायर, नामर्द बन गये। कुत्तेको देखिए; वह सत्याग्रह नहीं करता, परन्तु भागता भी नहीं; वह तंग करनेवालेपर भौंकता है, उससे लड़ता है। भारत मनुष्यत्व न दिखा सके तो अपना पशु-बल तो जरूर दिखा सकता है। आइन्दा मैं कभी यह नहीं सुनना चाहता कि सौ हट्टकट्टे जवान सिपाहियोंको आते देखकर आप भाग खड़े हुए। मैं यह सुनकर आपको शाबाशी दूँगा कि आपने उनके सामने खड़े रहकर अपने प्राणोंकी बलि दे दी। मैं यह सुनकर भी आपको शाबाशी दूँगा कि आप उनके विरुद्ध अच्छी तरह लड़े। कोई मुझसे शायद यह कहे कि अगर पुलिस हमें पकड़ ले जाये तो ‘हम क्या करें?’ मैं कहूँगा कि इस प्रकार अपनी जान बचानेसे अच्छा तो मर जाना है। सरकारने भी आपको अपने जानमालके लिए लड़नेकी अनुमति दी है। स्पष्ट ही इसके लिए कानूनमें भी छूट है। कोई भी चम्पारनी आइन्दा ऐसे मौकेपर युद्ध करेगा और मारेगा या मरेगा। जैसी शिकायत मैंने आज सुनी है, मेरे लिए वैसी शिकायत सुनना असह्य है।

परन्तु आप मेरी बात अच्छी तरह समझ लीजिए। मैं आपको हर समय मारनेको तैयार हो जाना नहीं सिखाता। पुलिस वारंट लेकर आये, तब आप लड़ने निकलें तो यह आपकी नामर्दी होगी। हम पचास आदमी खड़े हों और एक सिपाही हुक्म देने आया हो तो उसे मारनेमें ऐसी क्या बहादुरी है? अगर उस स्थितिमें हम उसका हुक्म मान लेते हैं तो इसमें हमारी मर्दानगी है। वारन्टपर पकड़ना तो पुलिसका काम ही है। उसका वारंट अनुचित हो तो भी पुलिसके हाथों से किसीको छुड़ाना उचित नहीं है। पुलिस आपको पकड़ते वक्त मार-पीट करे, गालियाँ दे तो वह भी आपको सह लेना चाहिए। परन्तु पुलिस आपके घरमें घुसे, आपके ढोर-डंगर छीने, आपका धन लूटे, तब अगर आप अपने प्राण देनेको तैयार न हों तो उसका मुकाबला अवश्य कीजिए, अवश्य अपनी लाठियाँ चलाइए। परन्तु फिर एक दूसरी शर्त भी रखूँगा। आपसे एक मौकेपर मारपीट करनेको कहता हूँ तो इसका मतलब यह नहीं कि कोई चोर आये तो आप उसे जानसे ही मार डालें। लड़ाईका भी तो कोई नियम होता है न? लाठीके सामने तलवार उठाना धर्म नहीं, लाठीके सामने मुक्का मारनेमें धर्म है। एक आदमीके विरुद्ध पचासकी सेना लेकर जाना धर्म नहीं,