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६३. पत्र: द्विजेन्द्रनाथ ठाकुरको

भागलपुर जाते हुए
११ दिसम्बर, १९२०

प्रिय बड़ोदादा,

आपके पत्रसे मुझे वड़ी सान्त्वना मिली। आपकी स्वीकृतिको[१]मैं आशीर्वाद मानता हूँ। मैं १३ तारीखको कलकत्तामें होऊँगा और १४ तारीखको ढाकामें। भगवान् आपको इतनी लम्बी आयु दे कि आप भारत में स्वराज्यकी स्थापना देख सकें।

आपका
मो० क० गांधी

[अंग्रेजी से]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

६४. भाषण : मुंगेरमें असहयोगपर[२]

११ दिसम्बर, १९२०

अध्यक्ष महोदय और सज्जनो,

मैं इतना कमजोर हूँ कि खड़े होकर भाषण नहीं दे सकता। मेरे दोस्त, श्री श्रीकृष्ण सिंहने आपको बताया है कि पिछले साल जब जमालपुरके कुली हड़तालपर थे, वे मुझसे मिलने अहमदाबाद आये थे और मुझसे जमालपुर आनेका अनुरोध किया था। परन्तु मैं किसी अन्य महत्त्वपूर्ण काममें लगा था, इसलिए उनका अनुरोध पूरा न कर सका। मैं निस्संकोच होकर कहता हूँ कि में किसानका धन्धा बैरिस्टरके धन्धे से अधिक पसन्द करता हूँ। मेरे हृदयमें एक वकीलसे मजदूरका स्थान ऊँचा है। पिछले साल जब मैंने जमालपुरके कुलियोंकी मुसीबतके बारेमें सुना तो मुझे बेहद दुःख हुआ, परन्तु किसी अन्य काममें पहलेसे लगे होने के कारण मैं आने में असमर्थ रहा। आज मैं आप सबसे खास करके जमालपुरके कुलियोंसे मिलकर बहुत खुश हुआ हूँ। आपकी उपस्थिति आज बहुत अधिक है। मुझे आशंका है कि शायद मेरी आवाज आपमें से हरएक तक नहीं पहुँच सकेगी। इसलिए मैं बहुत थोड़े शब्दोंमें अपनी बात कहूँगा।

  1. शिक्षाके क्षेत्रमें असहयोगके कार्यक्रमके विषय में।
  2. यह भाषण मौलाना शाह उमरकी अध्यक्षता में हुई एक सभामें दिया गया था।