पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९७
भाषण: मुंगेरेमें असहयोगपर

प्रत्येक भारतीयका, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, अरब हो या अफगान, स्त्री हो या पुरुष, यह कर्त्तव्य है कि भारतकी वर्तमान दशापर गहराईसे विचार करे ताकि स्थितिका सूक्ष्म विश्लेषण कर सके। आजकी मौजूदा बुराइयोंको निकाल फेंकनके उपाय और तरीके सोच निकालना भी आपमें से हरएकका कर्त्तव्य है। सरकारने हमारे सात करोड़ मुसलमान भाइयोंको हताश कर दिया है। उसने टर्कीके प्रति अपना वचन भंग किया है और उस देशके लगभग टुकड़े कर डाले हैं।[१] इस सरकारने पंजाबमें हमारे भाइयोंको पेटके बल रेंगनेपर मजबूर किया है और उनके न जाने कितने ऐसे अपमान किये हैं जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती। इसने हमारे विद्यार्थियोंको, छ:-सात सालके बच्चोंको भी दोपहरकी जलती धूपमें चार-चार बार यूनियन जैक――ब्रिटिश झंडेको सलाम करनेके लिए १६ मील पैदल चलाया है; और इसके परिणामस्वरूप कुछ कोमल बच्चोंके तो प्राण ही चले गये।[२] इस सरकारने पंजाब में डेढ़ हजार बेगुनाहोंका कत्लेआम कर दिया और अब कहती है हम उसको भूल जाएँ। यह कहती है कि खिलाफतकी जो दुर्दशा हुई है उसमें उसका कोई हाथ नहीं है। मैं आपसे कहता हूँ कि इस सरकारके सामने आप कभी न झुकें, कभी इसे सलाम न करें। मैं आपसे कहता हूँ कि आप इस सरकारके कामोंमें कभी हाथ न बटाएँ। हम शैतानका संग-साथ छोड़कर ही उसे निःशेष कर सकते हैं। यदि हम मानते हैं कि इस सरकारने हमपर आसुरी भावोंकी छाप डाल दी है तो मैं कहूँगा कि हमारा कर्त्तव्य इस सरकारको हटा देना है। यदि यह सरकार अपनी जबर्दस्त गलतियोंको स्वीकार नहीं करती, यदि सबपर यह जाहिर नहीं कर देती कि जिस ढंगसे पंजाब और खिलाफतके मामले रफा-दफा किये गये, वह गलत है, यदि सरकार अपने कृत्योंके लिए पश्चात्ताप और क्षमा याचना नहीं करती तो हम चैनसे नहीं बैठेंगे। इस आसुरी सरकारको हम दो तरीकोंसे हटा सकते हैं; एक तो तलवारते, और दूसरे असहयोगसे। हिन्दू और मुसलमान बुजुर्ग मिलकर इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि तलवारोंका आधार लेकर हम सफल नहीं हो सकेंगे। यदि हमने एक बार भी तलावरें खींची तो सरकारको झुका सकनेके बजाय हम खुद ही समाप्त हो जायेंगे; सारे अन्याय और अत्याचार ज्योंके-त्यों बने रहेंगे और बदला ले सकने की घड़ी ही न आयेगी। परन्तु यदि हम अहिंसात्मक असहयोग अपनायें तो निश्चय ही सफलता मिलेगी। यदि आप मानते हैं कि शैतान से विदाई ले लेना आवश्यक है तो ‘कुरान’, ‘गीता’ और तुलसीदासके कथनानुसार हमें ईश्वरकी सहायता और अनुग्रहकी याचना करनी चाहिए। हम ध्यान रखें कि हम किसीसे भी नाराज न हों, अंग्रेजोंको गाली न दें और न उनके प्राण लेनेकी बात सोचें। हम किसी भी खान बहादुरके प्रति जो अपना खिताब नहीं छोड़ता, नफरत जाहिर नहीं करना चाहते, हम उस वकीलको जो अपनी वकालत नहीं छोड़ता, गाली देना नहीं चाहते, हम उस विद्यार्थीसे, जो अपना कालेज या स्कूल नहीं छोड़ता, झगड़ना नहीं चाहते। हम केवल यही चाहते हैं कि यदि वे हमारी बात नहीं सुनते तो उनसे असह-

  1. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ४४५-४८ और परिशिष्ट १।
  2. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ २३०, २५३, २६३, २६६, २७९-८०।

१९-७