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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

योग किया जाये। न तो हमें किसी भी रूपमें उनकी मदद करनी चाहिए, न उनसे मदद लेनी चाहिए। इससे किसीको नुकसान नहीं होगा। ईश्वर हमारी मदद करेगा और हमारे कष्टोंको समझेगा। मैंने आप सबसे असहयोग करनेको कहा है; परन्तु मैं यह भी कहता हूँ कि आप परस्पर सहयोग करें। हिन्दुओं और मुसलमानोंको मिलकर रहना चाहिए; वे एक ही माँके बेटे हैं। हिन्दुओंको अपने और मुसलमानों को अपने धर्मपर चलना चाहिए। परन्तु उनके एक दूसरेसे मिलकर न चल सकनेका कोई कारण मुझे दिखाई नहीं देता। जब हमारे सात करोड़ मुसलमान भाइयोंका धर्म-संकटमें हो तो हम सबको एक साथ अपने शीश अर्पित कर देनेके लिए तैयार रहना चाहिए। यदि आप क्रोध न करें और पूरी तरह असहयोग करें तो मैं आश्वासन देता हूँ कि आपको स्वराज्य एक सालके अन्दर मिल जाएगा; आप पंजाब के अन्यायको निःशेष करा सकेंगे और मेसोपोटामिया, थ्रेस तथा अन्य स्थानोंसे[१] सम्बन्धित संघर्ष में भी आप विजयी होंगे। असहयोग आन्दोलन में काम हैं। हला खिताबोंका त्याग, आदि; दूसरा स्कूल और कालेज छोड़ना――जो विद्यार्थी १६ से ऊपर हैं उन्हें स्वयं अपने माता-पितासे कालेज और स्कूल छोड़ने की इजाजत मांगनी चाहिए; तीसरा वकीलों द्वारा वकालत बन्द करना और मामलोंका पंचोंद्वारा आपसी फैसला कराना; चौथा कौंसिलोंका और जो लोग कौंसिलोंमें गये हैं उनका बहिष्कार; पाँचवाँ स्वदेशी चीजों और कपड़ेका इस्तेमाल। हमें चरखेकी सहायता से अधिकाधिक कपड़ा तैयार करना चाहिए क्योंकि भारतीय मिलों द्वारा तैयार किया गया कपड़ा वर्तमान माँग पूरी नहीं कर सकता।

इस अवसरपर बहुत शोर हुआ। आगे बोलते हुए महात्माजीने कहा:

यदि हम पहले कही गई सारी बातें करें तो हमें शीघ्र ही स्वराज्य मिल जायेगा, परन्तु जबतक इस तरहका शोर होता रहेगा, कोई भी काम कठिन होगा। जबतक हम अनुशासन नहीं पालते, हम कोई व्यवस्था नहीं कर सकते।

इस के बाद उन्होंने स्वयंसेवकोंको कुछ सलाह दी और असहयोग कोषके लिए धन संग्रह करनेको कहा। सभास्थलपर ही काफी धन इकट्ठा हो गया। महात्माजी २० मिनट और बोले।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, १९-१२-१९२०
 
  1. जिनपर पहले टर्कीके सुलतान, इस्लामके खलीफाका शासन था।