पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/१२७

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६५. तार: आसफ अलीको[१]

[११ दिसम्बर, १९२० को या उसके बाद][२]

भंग करनेका आदेश पालन किया जाये। पैरवीके लिए वकील हरगिज नहीं।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७३७६) की फोटो-नकलसे।

६६. वैष्णव और अन्त्यज

वैष्णव शिरोमणि नरसिंह मेहताने किसी भी वैष्णवके लिए आवश्यक जिन गुणोंका बखान किया है उनका में वर्णन कर चुका हूँ। महाराजश्री और मेरे बीच जो संवाद हुआ उसके सम्बन्धमें जो लिखा गया है उसे पढ़कर मुझे जो दुःख हुआ, उसे भी मैं पहले ही व्यक्त कर चुका हूँ।<ref>देखिए “वैष्णवोंसे”, ५-१२-१९२०।<ref>

उक्त टीकामें मुझे धर्म-निर्णयके स्थानपर दुराग्रह और आक्षेप ही दिखाई दिया। मैं भी दुराग्रह करता हूँ और आक्षेप लगाता हूँ――मेरे सम्बन्धमें क्या ऐसा नहीं कहा जा सकता? जरूर कहा जा सकता है। परन्तु इसका निर्णय तो पाठक ही कर सकते हैं। महाराजश्रीके साथ जब संवाद आरम्भ हुआ उसी समय उन्होंने मुझे बता दिया था कि शास्त्रोंके विवेचनमें बुद्धिको स्थान नहीं है। मुझे तो यही सुनकर दुःख हुआ। जो बुद्धिगम्य नहीं है, जिसे हृदय स्वीकार नहीं करता वह शास्त्र हो ही नहीं सकता, ऐसी मेरी मान्यता है। और मुझे लगता है कि जो केवल धर्मपर आचरण चाहता है, उसे यह सिद्धान्त स्वीकार करना चाहिए। ऐसा न हो तो हमारे धर्मभ्रष्ट होनेका भय होगा। मैंने लोगोंको ‘गीता’ की यह व्याख्या करते सुना है कि अगर हमारे सगे-सम्बन्धी दुष्ट हों तो पशुबलसे हम उन्हें दुष्टता

  1. १८८८-१९५३; वैरिस्टर और राष्ट्रवादी मुस्लिम राजनीतिज्ञ, खिलाफत आन्दोलनके एक नेता। यह तार आसफ अलीके १० दिसम्बर, १९२० के इस तारके उत्तर में भेजा गया था: “आपके खिलाफत कार्यकर्ताओंपर लाशका अपमान करनेका झूठा आरोप लगाया गया है। कथित फरियादीने मुकदमा दायर करनेकी अपनी अनिच्छा अधिकारियोंको जता दी है पर अधिकारी मामलेको प्रज्ञेष (कॉग्निज़ेबिल) मानते हैं और कार्रवाई करनेपर तुले हुए जान पड़ते हैं। चूँकि शिकायत मूल रूपमें एक व्यक्ति द्वारा दर्ज करा दी गई है, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि क्या हमें अभियुक्तोंको झूठे आरोपोंके खिलाफ अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा करनेकी सलाह देनी चाहिए। क्या हम स्वयंसेवक दल भंग करनेके सरकारी आदेशकी अवज्ञा करें?” देखिए “टिप्पणियाँ”, २२-१२ - १९२० भी।
  2. आसफ अलीका तार गांधीजीको ११ दिसम्बर, १९२० को मिला था।