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भाषण: कलकत्ता में असहयोगपर

था तो मेरे विचारसे उन्होंने इस तरह स्वयं अपनी और अपने धर्मकी भी तौहीन की।[१] मैं एक बार फिर कहता हूँ कि हम हिंसाके बलपर अपने देशको मुक्ति नहीं दिला सकते।

मैंने कांग्रेसके मंचसे कहा था[२] कि अगर राष्ट्र पर्याप्त उत्साह दिखाये तो स्वराज्य एक वर्षमें ही मिल सकता है; यह बात मैंने पूरी गम्भीरताके साथ कही थी। वर्षके तीन महीने तो बीत ही चुके हैं। अगर हम स्वयं अपने प्रति सच्चे हैं, अपने राष्ट्रके प्रति सच्चे हैं और जिस राष्ट्र-गीतको निरन्तर गाया करते हैं, उसके प्रति सच्चे हैं, अगर हम ‘भगवद्गीता’ के प्रति सच्चे हैं और ‘कुरान’ के प्रति सच्चे हैं तो हम इस कार्यक्रमको शेष नौ महीने में पूरा करके इस्लामको, पंजाबको और समस्त भारतको मुक्ति दिलाकर दिखायेंगे।

विशेष रूपसे शिक्षित वर्गीका ध्यान रखते हुए, मैंने मर्यादित ढंगका कार्यक्रम पेश किया है, जिसपर एक सालके भीतर अमल किया जा सकता है। लगता है, हम इस भ्रममें पड़े हुए हैं कि सरकारने जिन कौंसिलों, न्यायालयों और स्कूलोंकी व्यवस्था की है, उनके बिना हमारा काम चल नहीं सकता। जिस क्षण यह भ्रम दूर हो जायेगा उसी क्षण हमें स्वराज्य मिल जायेगा। एक लाख विदेशी तीस करोड़ लोगोंके एक राष्ट्रके साथ मनमानी करें, यह इस सरकारके लिए भी लज्जाजनक बात है और हम सबके लिए भी। उनका हमारे साथ मनमानी कर सकना सम्भव कैसे हुआ? हमें आपसमें विभक्त करके वे हमपर शासन करते रहे हैं। ब्रिटिश सरकार “फूट डालो और राज्य करो” की नीतिपर ही टिकी हुई है, ह्यूमकी इस स्पष्ट स्वीकारोक्तिको मैं कभी भूल नहीं पाता। इसीलिए मैंने हिन्दू-मुस्लिम ऐकताको असहयोगकी सफलताके लिए सबसे बड़ी जरूरत माना है और इसपर खास जोर दिया है। लेकिन यह एकता मौखिक एकता नहीं होनी चाहिए, सौदेबाजीकी एकता नहीं होनी चाहिए। यह एकता हार्दिक प्रेमकी ठोस नींवपर आधारित होनी चाहिए। अगर आप हिन्दुत्वकी रक्षा करना चाहते हैं तो मैं कहता हूँ, भगवानके लिए, मुसलमानोंके साथ सौदेवाजी मत कीजिए। इधर महीनोंसे मैं मौलाना शौकत अलीके साथ ही घूमता रहा हूँ, लेकिन इस बीच मैंने गो-रक्षाके बारेमें कभी कुछ बात नहीं की है। अली बन्धुओंसे मेरा सम्बन्ध सत्यनिष्ठापर आधारित है। मैं समझता हूँ, मेरी सत्यनिष्ठा कसौटीपर चढ़ी हुई है, समस्त हिन्दुत्वकी सत्यनिष्ठा कसौटीपर चढ़ी हुई है। अगर उनमें सत्यनिष्ठाका अभाव न होगा तो वे भारतके मुसलमानोंके प्रति अपना कर्त्तव्य अवश्य निभायेंगे ।किसी प्रकारकी सौदेबाजी हमारे लिए लज्जाजनक होगी। प्रकाश प्रकाशको जन्म देता है, अन्धकारको नहीं; और सदुद्देश्य से प्रेरित नेक बरतावको दोहरा पुरस्कार मिलता है। गौओंकी रक्षा तो सिर्फ ईश्वर ही कर पायेगा। आज मुझसे ऐसे सवाल न पूछिए कि “गौओंका क्या होगा?” जब भारत इस्लामके सम्मानकी रक्षा कर लेगा, तभी मुझसे ऐसे सवाल पूछिएगा। आप अपने राजाओंसे पूछिए कि वे अपने

  1. देखिए पृष्ठ ९९, पा० टि० १।
  2. सितम्बर १९२० में कलकत्ता कांग्रेसके अधिवेशनमें।