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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेहमानोंकी मेजबानीके लिए क्या कुछ करते हैं। वे क्या उनके लिए गोमांस और शैम्पेनकी[१] व्यवस्था नहीं करते? पहले आप गौ-वध रोकनेके लिए उन्हें समझाइए- मनाइए और फिर मुसलमानोंके साथ कोई सौदेबाजी कीजिए। और स्वयं हम हिन्दू गौओ और उनकी सन्ततिके साथ कैसा व्यवहार करते हैं? क्या हम उनके साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे व्यवहारकी अपेक्षा हमसे हमारा धर्म रखता है? जबतक हम अपना आचरण ठीक नहीं कर लेते, जबतक हम गौओंको अंग्रेजोंसे नहीं बचाते, तबतक उसके लिए मुसलमानोंसे कुछ कहनेका हमें कोई हक नहीं है। उनसे गौओंको बचानेका सबसे अच्छा तरीका उनकी इस विपदकी घड़ीमें बिना किसी शर्तके उनकी सहायता करना है।

इसी तरह पंजाबके प्रति हमारा क्या कर्त्तव्य है? जिस दिन किसी एक भी पंजाबीको अमृतसरकी उस गन्दी गली में पेटके बल रेंगनेको मजबूर किया गया था, उस दिन दरअसल सारा भारत इस अपमानको झेलनेके लिए मजबूर किया गया था; जब एक उद्धत अधिकारीने मनियाँवालाकी निर्दोष स्त्रियोंके बुरके खोले थे, उस दिन उसने दरअसल भारतके समस्त स्त्री-समाजके चेहरेको बेपर्दा किया था; भारतका समस्त बाल समुदाय उस दिन अपमानित किया गया था, जिस दिन पंजाबके मार्शल लॉ क्षेत्र में नन्हें स्कूली बच्चोंको निश्चित स्थानोंपर जाकर हर रोज चार बार हाजिरी और ब्रिटिश झंडेको सलामी देनेपर मजबूर किया गया था। इस अमानवीय आदेशके कारण सात-सात वर्षके दो बच्चोंको लूकी चपेटमें पड़कर प्राण गँवाने पड़े थे, उन्हें दोपहरकी तपती धूपमें खड़े रहनेको मजबूर किया गया था।[२] मेरे विचारसे जबतक यह सरकार उचित पश्चात्ताप करके अपने अपराधोंका परिमार्जन नहीं करती तबतक इसके संरक्षणमें चलनेवाले स्कूलों और कालेजोंमें जाना पाप है। जब हम याद करते हैं कि पंजाब में इसी सरकारके न्यायालयोंने निरीह लोगोंको कारावास और मौतकी सजाएँ दी थीं, तब अगर हममें आत्म-सम्मान है तो हम इन न्यायालयोंमें अपने मामले कैसे पेश कर सकते हैं? स्वेच्छापूर्वक इस सरकारकी सहायता करना या उससे कोई सहायता लेना इन अपराधोंमें साझेदार बनना है। भारतकी स्त्रियाँ इस संघर्षके आध्यात्मिक स्वरूपको सहज ही समझ गई हैं।

हजारों स्त्रियाँ अहिंसात्मक असहयोगका सन्देश सुनने के लिए सभाओंमें आती हैं और स्वराज्य-प्राप्तिका काम आगे बढ़ाने के लिए मुझे अपने बहुमूल्य जेवरात भेंट करती हैं। लोगोंने अपने उत्साहका अद्भुत परिचय दिया है। फिर अगर मैं यह मानता हूँ कि एक सालके अन्दर स्वराज्य मिल सकता है तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात है भारतकी स्त्रियोंने जो उत्साह दिखाया है, उसका मूल्य अगर मैं कम करके आँकू तो इसका तो यह मतलब होगा कि मुझे ईश्वरमें पूरी आस्था नहीं है। आशा है, विद्यार्थीगण अपना कर्त्तव्य निभायेंगे। राष्ट्र निश्चय ही यह अपेक्षा भी करता है कि जो वकील-समाज आजतक जन-आन्दोलनका नेतृत्व करता आया है, वह इस नई जागृतिको अवश्य पहचानेगा।

  1. एक तरहकी विलायती शराब।
  2. तात्पर्य १९१९ के पंजाबके उपद्रवोंसे है, देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १२८-३२२।