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पत्र: सरलादेवी चौधरानीको

  मैंने अंग्रेजोंके प्रति कड़े शब्दोंका प्रयोग किया है, लेकिन बहुत सोच-समझकर। मैं बदलेकी भावना से प्रेरित नहीं हूँ। मैं अंग्रेजोंको अपना शत्रु नहीं मानता। उनमें से बहुत-से लोगोंकी योग्यताका मैं कायल हूँ। बहुत से अंग्रेजोंकी मैत्रीका सौभाग्य भी मुझे प्राप्त है, लेकिन आज अंग्रेजी शासनका जो स्वरूप है, उसका मैं पक्का दुश्मन हूँ; और अगर इसे सुधारा नहीं जा सकता――और अगर किसी एक व्यक्तिकी शक्ति से, तपस्यासे इसे ध्वस्त किया जा सकता हो――तो मैं इसे अवश्य ध्वस्त कर दूँ। जो साम्राज्य अन्याय और विश्वासघातका प्रतीक बन जाये और फिर भी अगर उसके कर्ता-धर्ता अन्याय और विश्वासघातके लिए पश्चात्ताप नहीं करते तो उसे बने रहनेका कोई अधिकार नहीं है। असहयोगकी योजना राष्ट्रको न्याय प्राप्त करने में सक्षम बनानेके लिए ही तैयार की गई है।

मुझे आशा है कि आत्मशुद्धिके इस आन्दोलन में बंगाल उचित योगदान करेगा। जब सारा भारत सो रहा था, उस समय बंगालने ही स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षाका शुभारम्भ किया।[१] मैं आशा करता हूँ कि शुद्धीकरण और आत्मत्यागके द्वारा स्वराज्य प्राप्त करन और खिलाफत तथा पंजाबके लिए न्याय प्राप्त करनेके इस आन्दोलन में बंगाल सबसे आगे रहेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-१२-१९२०

७०. पत्र: सरलादेवी चौधरानीको

कलकत्ता
१४ दिसम्बर, १९२०

तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम मुझे भार नहीं लगता । वह तो मेरे जीवनके बड़ेसे-बड़े सुखोंमें से है। इस प्रेमका आधार तुम्हारे प्रति मेरा यह विश्वास ही है कि आखिरकार तुम्हारा हृदय निर्मल है। यह प्रेम तभी निःशेष होगा जब मैं तुम्हें इसके विपरीत पाऊँगा। अगर मेरा प्रेम तुम्हारे अच्छेसे-अच्छे गुणोंको निखारकर उद्घाटित नहीं कर देता, अगर वह तुम्हें आजकी अपेक्षा अधिक अच्छा और अधिक पवित्र नहीं बनाता तो उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाता। मैं अपने इस प्रयत्न में तुम्हारे साथ कड़ा व्यवहार करते दिखूँ तब भी तुम बुरा न मानना। खैर; अभी तो मैं तुम्हें परख रहा हूँ और कोशिश यही करूँगा कि कोई ऐसा व्यवहार न करूँ जो तुम्हें बुरा लगे।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

  1. यह १९०५-६ की बात है, जब सरकारके बंग-भंगके