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७१. भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, कलकत्तामें

१४ दिसम्बर, १९२०

महात्मा गांधीने सभामें अपने भाषणका आरम्भ श्रोताओंको “मेरे सह-विद्याथियो” सम्बोधनसे किया। उन्होंने कहा: हालाँकि मैं किसी राष्ट्रीय अथवा सरकारके तत्त्वावधान में स्थापित विश्वविद्यालयसे सम्बद्ध किसी कालेजमें नहीं पढ़ता; लेकिन मैं समझता हूँ कि हर समझदार आदमीको जीवनभर विद्यार्थी बना रहना चाहिए। अध्यक्ष महोदयने और गांधीजीसे पहलेके दो अन्य वक्ताओंने श्रोताओंसे कहा था कि वे स्कूल और कालेज छोड़नेके बारेमें आज शामको ही फैसला कर लें। महात्मा गांधीने उसका उल्लेख करते हुए कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप ऐसी कोई बात न करें। मेरी सलाह है कि आप आज ही कोई फैसला न करें। मैं चाहता हूँ कि आप भावनाओंमें न बहें, बुद्धिसे काम लें। आज शामको कोई फैसला करनेके बजाय आप अपने-अपने कमरोंमें जायें और ईश्वरसे प्रार्थना करें कि वह आपको रास्ता दिखाये। आप उस रास्तेपर चलें। मैं यह बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा सन्देश उन लोगोंके लिए नहीं है जिनका विश्वास सर्वशक्तिमान परमेश्वरमें नहीं है और जो यह नहीं मानते कि वही सब कार्योंमें हमारा मार्गदर्शन करता है।

उन्होंने अपने भाषणके विषयपर आते हुए कहा: हमारा कार्य कोई छोटा-मोटा कार्य नहीं है। हमारे सामने जो परिस्थिति है, वैसी परिस्थिति ब्रिटिश राज्यकी स्थापनासे लेकर आजतकके इस लम्बे कालमें शायद कभी नहीं आई। ब्रिटिश सरकारने इस्लामकी पीठमें छुरा भोंका है। सभी जानते हैं कि श्री लॉयर्ड जॉर्जने[१] भारतके मुसलमानोंको गम्भीरतापूर्वक यह वचन[२]दिया था और इस वचनको उन्होंने मुसलमानोंके लिए, और खास तौरसे भारतके मुसलमानोंके लिए कई बार दुहराया था कि टर्कीको सम्पूर्ण प्रभुसत्ताको अखण्ड रखा जायेगा। श्री लॉयर्ड जॉर्ज अब इस वचनसे मुकर गये हैं और उन्होंने टकके सुल्तानसे कुस्तुन्तुनिया, अस, स्मर्ना और एशिया माइनरके सभी अच्छे प्रदेश छीन लिये हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि कुस्तुन्तुनिया तुर्कीके ही अधिकारमें है; लेकिन मैं कहता हूँ कि सुल्तान अपने राज्यमें रहते हुए भी कुस्तुन्तुनियामें कैद है। उनका मेसोपोटामियाका इलाका अंग्रेजोंके कब्जेमें है और सीरिया फ्रांसीसियोंके। मुसलमानोंके दिलोंका यह घाव जबतक भर नहीं जाता, तबतक

  1. १८६३-१९४५; ब्रिटिश राजनीतिज्ञ; प्रधानमन्त्री, १९१६-२२।
  2. लॉयड जॉर्जने ५ जनवरी, १९१८ को यह घोषणा की थी: “हम टर्कीसे उसकी राजधानी था उसके एशिया माइनर और थ्रेसके समृद्ध और प्रसिद्ध प्रदेशोंको――जिनमें तुर्कीका बहुमत है――छीननेके लिए नहीं लड़ रहे हैं। हमें इसपर कोई आपत्ति नहीं कि तुर्क जाति जहाँ बसी हुई है उन प्रदेशों में तुर्कीका साम्राज्य कायम रहे और उसकी राजधानी कुस्तुन्तुनिया हो।”