पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/१४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११३
भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, कलकत्ता में

  यदि आप सोचते हैं कि स्कूलों और कालेजों में रह कर आप अपनी बुद्धिका विकास कर सकते हैं, तब आप उन्हें न छोड़ें। और यदि यह सोचें कि इन स्कूलोंमें रहकर आप स्वतन्त्रताको नज़दीक ला रहे हैं तो स्कूलोंमें पढ़ते रहना आपका परम कर्त्तव्य है। और आप यदि इनमें जाना बन्द नहीं करते तो आपको अपने बचनके अनुसार अपनी संस्था के प्रति वफादार रहना चाहिए क्योंकि प्रारम्भ से ही आपसे इसकी आशा रखी जाती है। आपको ढोंगी नहीं बनना चाहिए; ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप उनमें जाते भी रहें और मनमें उनके प्रति अश्रद्धा भी हो। मनमें अश्रद्धा होनेपर यह आपका परम कर्त्तव्य है कि आप स्कूल-कालेज केवल छोड़ ही न दें, बल्कि खुल्लमखुल्ला घोषणा कर दें कि आपका उद्देश्य इस सम्पूर्ण व्यवस्थाको तहसनहस करना है। एक बार में फिर कहता हूँ कि में केवल आपकी भाबुकताको नहीं उभारना चाहता, बल्कि चाहता हूँ कि आप अपनी बुद्धि और हृदय दोनोंसे काम लें। मेरी प्रार्थना है कि आप मेरी बात ध्यान से सुनें और उसपर कुछ समयतक उचित विचार करनेके बाद ईश्वरके सम्मुख अपना निर्णय करें। यदि आप यह समझ लेंगे कि कालेज छोड़ना कर्त्तव्य है, तो फिर आप वहाँ एक भी दिन और न रह पायेंगे। आप दिलमें बदलेकी भावना रखकर, भविष्यमें कभी बदला निकालनेका अवसर पानेकी उम्मीदमें इन संस्थाओंमें जाते रहें यह भी नहीं हो सकता। [गांधीजीने आगे कहा:]

वैसे इतिहास में कपटपूर्ण आचरणके अनेक उदाहरण मिलते हैं। सम्भव है कि ऐसी परिस्थितिमें पड़कर अन्य राष्ट्र कपटपूर्ण आचरणका सहारा लेते; लेकिन असहयोग आन्दोलनमें वह नहीं किया जा सकता। यह तो शुद्धीकरणकी प्रक्रिया है, और इसमें ईश्वरकी सहायताकी अपेक्षा रहती है, मनुष्यकी नहीं। इसमें आवश्यकता इस बातकी है कि एक उच्च, आदर्शपूर्ण ढंगसे अपने उद्देश्य के लिए बड़ेसे-बड़ा बलिदान किया जाये। इसलिए जब मुझे इस विचारका कोई व्यक्ति मिलता है कि छात्रोंको स्कूलोंमें तो बने रहना चाहि किन्तु उन्हें इन संस्थाओंके प्रति दुर्भावना रखनी चाहिए और मौका मिलनेपर इन स्कूलोंके खिलाफ मरणान्तक प्रहार करना चाहिए, तब मुझे बहुत दुःख होता है। यदि हममें हमारे प्राचीन ऋषियोंका तनिक भी तेज शेष है, यदि मुसलमानोंमें इस्लामको वर्तमान रूप देनेवाले फकीरोंके प्रति कुछ भी सम्मानका भाव है और वे ‘कुरानको’ ठीक तरहसे पढ़ते हैं, तो वे देखेंगे कि दोनों धर्मोमें कपट और बेईमानीके लिए कोई स्थान नहीं है। ऐसे मामलेमें छलकी कोई गुंजाइश नहीं। हमारी लड़ाई तो शुद्ध धार्मिक लड़ाई है। यदि हम शैतानके तरीकोंसे काम लेंगे तो निश्चय ही असफल रहेंगे। तब विद्यार्थियोंको क्या करना चाहिए? मैं पहले ही कह चुका हूँ कि में कोई सौदेबाजी करने के लिए नहीं आया हूँ। लेकिन में आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि यदि आप सामूहिक रूपसे स्कूलोंसे बाहर चले आयेंगे तो राष्ट्रीय संस्थाओंकी कमी न रहेगी। वे सभी नेता, जो इस समय सोते

१९-८