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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जान पड़ते हैं, जाग जायेंगे और आपके लिए स्कूल और कालेज स्थापित कर देंगे। गुजरातमें ऐसा ही हुआ है और ऐसा ही सूरतमें भी। इन नेताओंका दोष क्या है? अहिंसात्मक असहयोगमें उनका विश्वास नहीं है; इसीलिए उन्होंने कोई उत्साह नहीं दिखाया है। किन्तु यदि सभी विद्यार्थी स्कूल छोड़ दें तो मुझे आशा है। कि बाबू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भी हमारा साथ देंगे। मैं यही चाहता हूँ कि इन स्कूलों और कालेजोंका बहिष्कार करके आप अपने पैरोंपर खड़े हों, यह न हो कि एक गुलामीमें से निकल कर दूसरी गुलामीमें फँस जायें । मैं चाहता हूँ कि विद्यार्थी पूरी तरह अपने पैरोंपर खड़े हों, वे नया जीवन व्यतीत करते हुए स्वतन्त्रताको प्राणप्रद वायुमें साँस लें और अपने असहाय होनेकी भावनाको स्वावलम्बनमें बदल दें। अन्तमें गांधीजीने मातापिताओंके प्रति विद्यार्थियोंका कर्त्तव्य बताते हुए कहा: हाँ केवल उन्हीं विद्यार्थियोंकी स्थितिपर विचार कर रहा हूँ जो १६ वर्षसे अधिक आयुके हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि १६ वर्षकी आयुके बाद पुत्र मित्रवत् हो जाता है। मैं यह नहीं चाहता कि छात्र निरंकुश होकर माता-पिताकी आज्ञाकी अवहेलना करें। यदि आपको यह विश्वास हो कि आप सही रास्तेपर हैं तो आप उन्हें अपनी बात हाथ जोड़कर समझायें। आप उन्हें यह विश्वास दिलानेका प्रयत्न करें कि आपके साथ बहुत बड़ा अन्याय किया गया है। तब कोई भी माता-पिता अपने बेटेकी रायका अनादर नहीं करेंगे। माता-पिताओंके दिमाग एक खास तरहके साँचेमें ढल चुके होते हैं, लेकिन आपके दिमाग तो स्वच्छ और ग्रहणशील हैं। इसलिए मतभेद तो हो सकते हैं। किन्तु हगिज आप अपने माता-पिताओंकी रायके मुकाबले मेरी राय पसन्द न करें। हाँ, मेरी रायपर आपको विश्वास हो जाये तो आपको अपने माता-पिताकी आज्ञाकी अवहेलना करनेका अधिकार है। मैं आपसे फिर कहता हूँ कि आप भावावेशमें आकर कोई काम न करें। क्षणिक आवेशमें आकर आप स्कूलों और कालेजोंको छोड़ बैठें और फिर उनमें वापस जायें――इससे तो आपका वहाँ बने रहना ही ज्यादा ठीक है। उतावलीमें काम करनेका नतीजा तो केवल यही होगा कि आपको फिर कभी अपना संकल्प तोड़ना पड़ेगा और इस प्रकार बेइज्जत होना पड़ेगा। आप कोई कदम उठाने से पहले पचास बार सोचें। आप अपने मित्रों, माता-पिताओं और शिक्षकोंसे परामर्श करें, और यदि फिर भी आपका विश्वास यही हो कि आप सही रास्तेपर हैं तो आप स्कूल और कालेज छोड़ दें।

स्कूल और कालेज छोड़ देनेपर भी आप उन विद्यार्थियोंकी [देश] भक्तिको कम न मानें जिन्होंने स्कूल और कालेज नहीं छोड़े हैं। मैंने बहुधा देखा है कि जो छात्र स्कूल और कालेज नहीं छोड़ते उन्हें ताने दिये जाते हैं। आप जो स्वतन्त्रता अपने लिए चाहते हैं, वही स्वतन्त्रता दूसरोंको भी दी जानी चाहिए। सभाओंमें भी आप हो-हल्ला करने या तालियाँ बजानेका पाश्चात्य देशोंका तरीका न अपनायें। इससे कोई सहायता तो मिलती नहीं, उलटे विचार-प्रवाह रुकता है। आपके सम्मुख कोई भी