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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस आन्दोलनको स्वीकार कर लीजिए। भारतको केवल एक पाठ पढ़ना है, और वह है निर्भयताका पाठ। जब भारतके लोग निर्भय होना सीख लेंगे, तब मैं समझँगा कि भारत स्वतन्त्र हो गया। अब आपको अमली कदम उठाने चाहिए। “अहिंसात्मक” और “क्रमश: प्रगति” ये दोनों शब्द असहयोगके अंग हैं। हममें अभी इतनी शक्ति नहीं है कि किसानोंके पास जाकर उन्हें लगान देना बन्द करने के लिए कह सकें या सेनाके सिपाहियोंसे कह सकें कि वे अपनी नौकरी छोड़ दें। जब समय आयेगा तब हम तलवारोंका उपयोग करेंगे। जो मनुष्य उचित समयपर तलवार नहीं उठाता वह मूर्ख है; और जो अनुचित समयपर अपनी तलवार उठाता है, वह भी नासमझ है। असहयोगका प्रश्न आपके सामने प्रस्तुत है। भारतीयोंको केवल एक बात याद रखनी चाहिए, वह यह कि उन्हें अपने मनसे भय निकाल देना है। यदि आप अपने मनसे भय निकाल दें तो आप भी यही मानेंगे कि भारत स्वतन्त्र हो गया है। जब मुझे यह खयाल आता है कि भारतीय कितने कायर हो गये हैं, तब मैं दुःखमें डूब जाता हूँ। भारतीय कमसे-कम ५ वर्षके लिए ही सही, भय त्याग दें।

आप “अहिंसात्मक” और “क्रमश: प्रगति” इन दोनों शब्दोंको नहीं छोड़ सकते; ये तो “असहयोग” शब्दके साथ जोड़े गये हैं। यदि भारतके लोग इसे स्वीकार कर लें, तो वे अपने मताधिकारका ही नहीं, अपनी सम्पत्ति और प्राणोंका भी त्याग कर देंगे। यदि हमारे नेता खिताबयाफ्ता भारतीयों, वकीलों, छात्रों और कौंसिलोंके सदस्यों के पास जायें और उनसे अनुरोध करें, तो मेरा पक्का विश्वास है कि वे उन्हें त्यागना स्वीकार कर लेंगे और वे सोचेंगे कि उनका पोषण करनेवाला तो केवल ईश्वर है, न कि सरकार, अदालत और कौंसिलें। अगर आप ऐसा करें तो आपको किसानों और सिपाहियोंके पास जानेकी जरूरत नहीं होगी। तब मुसलमान इस्लामकी ही नहीं, भारतकी भी रक्षा कर सकेंगे। मैं भारत के लोगोंको और विशेषरूपसे बंगालके लोगोंको उस कार्यके लिए बधाई देता हूँ, जो उन्होंने मतदानके सम्बन्धमें[१] किया है। हम धीरजसे काम करेंगे। इसीसे पण्डित मदनमोहन मालवीय और दूसरे नेता, जिनमें हमारे भाई सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भी हैं, हमारे साथ आ सकेंगे।

हमें शान्तिसे काम करना चाहिए। मेरा खयाल है कि हम अपने इन भाइयोंको डरा-धमकाकर अपने साथ नहीं मिला सकते। मुझे जब यह मालूम हुआ कि एक उम्मीदवारके ऊपर मैला फेंका गया और एक मतदाताका कान काट लिया गया, तो मुझे बहुत दुःख हुआ। निश्चय ही, ये बहुत घृणित कार्य। हमें अपने भाइयोंके पास बहुत ही नम्रतापूर्वक जाना चाहिए और अपनी बात उनके दिलोंमें बैठानी चाहिए और प्रेम और दयासे उनका हृदय जीतना चाहिए। यदि आप इस तरह धीरजसे और लगनसे काम करेंगे, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि एक सालके भीतर, अबसे ९ महीने बाद, भारत अवश्य स्वतन्त्र हो जायेगा; और मुसलमान निश्चय ही इस्लामको खतरेसे बचा लेंगे। में छात्रोंसे अनुरोध करता हूँ कि आप पंजाबकी घटनाओं और इस्लामकी स्थितिपर विचार करें। यदि आप विचार करेंगे तो आपको

  1. लोगों को नवम्बर १९२० में विधान-परिषद चुनावों में मतदान देने रोकने के सम्बन्ध में।