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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तरह अनुभव करते हों कि आज हमारी गुलामी पहलेकी बनिस्बत ज्यादा मजबूत हो गई है और यदि आप मेरी तरह अनुभव करते हों कि पंजाबियोंके आत्म-सम्मानकी रक्षा और इस्लामकी इज्जतको बचाने के लिए आपको और मुझे कुछ-न-कुछ करना चाहिए, तो में ढाकाके छात्रोंसे कहता हूँ कि आप अपना तात्कालिक कर्त्तव्य समझिए। मान लीजिए कि भारतीय नवयुवकोंकी शिक्षाके लिए शैतानने ये स्कूल और कालेज स्थापित किये हैं; मान लीजिए कि आपको यह फैसला करना है कि एक ओर या तो आप अपने मस्तिष्क और हृदयको अविकसित रखें, या दूसरी ओर शैतान के स्थापित किये हुए स्कूलों और कालेजोंमें जायें; और यह भी कल्पना कीजिए कि भारतके युवकोंमें ईश्वरका भय है, आप सब आस्तिक हैं, आपका ईश्वरमें विश्वास है और आप ईश्वरकी अच्छाईपर विश्वास करते हैं तो आप क्या करेंगे। आप इन सब बातोंकी कल्पना कीजिए और मुझे बताइये कि आप बिना शिक्षाके रह जाना पसन्द करेंगे या शैतानके स्थापित किये हुए इन स्कूलों और कालेजोंमें जायेंगे। और यदि आपका उत्तर निश्चित रूपसे शैतान द्वारा स्थापित कालेजों और स्कूलोंको छोडनेके पक्षमें हो, तब मैं आपसे कहना चाहूँगा कि मेरा उद्देश्य सिद्ध हो जाता है। मेरा अपना मत यह है कि यह सरकार अपने नग्न रूपमें शैतानियतकी भावनासे ओतप्रोत सरकार है। यदि आप एक ऐसी सत्ता द्वारा शासित होना चाहते हैं जो ईश्वरीय भावना से ओत-प्रोत है, यदि आप भारतमें राम-राज्यकी स्थापना करना चाहते हैं, अर्थात् आप जिसे स्वराज्य कहते हैं, भारत में यदि उसकी स्थापना करना चाहते हैं तो यह आपका अनिवार्य कर्त्तव्य है कि आप इन स्कूलों और कालेजोंको बिना शर्त छोड़ दें। कारण, इन स्कूलों और कालेजों में जो शिक्षा दी जाती है वह ऐसी नहीं है जो आपको स्वराज्य दिला सके; यह स्वतन्त्रता या स्वाधीनताके इच्छुक व्यक्तियोंको दी जाने योग्य शिक्षा नहीं है। यह सरकार तो जनताको गुलाम बनाकर रखने में विश्वास करती है। क्या आप ऐसा सोचते हैं कि गुलाम बनाकर रखनेवाली सरकार आपको ऐसे ढंगकी शिक्षा दे सकती है जिससे आप गुलामीकी उन जंजीरोंको तोड़ सकें जिनमें आप बँधे हुए हैं। मुझे अभीतक गुलामोंका ऐसा कोई मालिक नहीं मिला जो अपने गुलामोंको यह बताता हो कि स्वतन्त्रताकी, स्वाधीनताकी कीमत क्या है। जहाँ भी गुलामोंने मतदानका अधिकार प्राप्त किया है, उन्होंने गुलाम रखनेवालोंकी मर्जीके खिलाफ ही प्राप्त किया है। अभी मैं शिक्षा-प्रणालीपर आक्षेप नहीं कर रहा हूँ, हालाँकि वह भी अपूर्ण और निकृष्ट है। मैं केवल उस सरकारपर आक्षेप कर रहा हूँ जिसके तत्त्वावधान में यह अपूर्ण और निकृष्ट शिक्षा भारतके नवयुवकोंको दी जाती है। मेरे खयालसे यह अवांछनीय है कि हम सरकारके प्रति अपने भीतर अश्रद्धा उत्पन्न करने और उसे पालते रहने के लिए इन स्कूलों और कालेजों में जायें। मैं तो समस्त भारतमें सरकारके विरुद्ध अश्रद्धा ही फैला रहा हूँ। मैं कहता हूँ कि इस सरकारके प्रति श्रद्धा और प्रेम रखनेका अर्थ है ईश्वरके प्रति अश्रद्धा करना। यह भारत और इस्लामके प्रति अश्रद्धा करना है, और जबतक यह सरकार अपने अन्यायोंका निराकरण नहीं करती और घुटन नहीं टेकती, तबतक हमारे मनमें उसके प्रति यह अश्रद्धा निश्चय