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भाषण: ढाका में

है। मैं उन्हें कई वर्षोंसे जानता हूँ। तभीसे उनके और मेरे बीच यह मतभेद है। लेकिन फिर भी मैं इस आचरणका समर्थन नहीं कर सकता। भारतके युवक उनके प्रति या किसी अन्यके प्रति ऐसा भद्दा व्यवहार करें तो मैं उसको प्रोत्साहन देनेका अपराधी नहीं बन सकता। आखिर बाबू बिपिनचन्द्र पालने अपने विवेकके अनुसार देशकी सेवा की है और वे अब भी अनुभव करते हैं कि उनमें जितनी समझ है उसके अनुसार वे अपने देशकी सेवा कर रहे हैं। उन्होंने छात्रोंको नये स्कूल और कालेज स्थापित होने तक रुके रहने की जो सलाह दी है, वह बुरी है; लेकिन यह तो व्यक्तिगत रायकी बात हुई। किन्तु यहाँ तो अन्तर विचारोंमें ही है। वे सच्चे दिलसे विश्वास करते हैं कि छात्रोंसे अपनी मौजूदा पढ़ाई-लिखाई छोड़ने के लिए कहना ठीक नहीं है। किन्तु मेरा खयाल है कि इसकी अपेक्षा तो भारतके छात्रोंको अशिक्षित ही बने रहना चाहिए।[१]

श्री दास मुझे बताते हैं कि बाबू विपिनचन्द्र पालने अपने भाषणोंमें यह बात कभी नहीं कही। तब तो लोगोंका सीटी बजाकर उन्हें मंचसे उतार देना और भी बुरी बात है। सभी वक्ताओंकी बात बड़े ध्यानसे सुनना आपके लिए आवश्यक है। हम प्रत्येक वक्ताका विश्वास करें, यह आवश्यक है।

हमें इतना स्वतन्त्र होना चाहिए कि हम अपनी बुद्धिसे खुद फैसला कर सकें। जबतक हम बुरे-भले में कोई फर्क नहीं कर सकते, जबतक हम निर्णयकी गलती और बुद्धिमत्तापूर्ण सही सलाहमें अन्तर नहीं कर सकते और जबतक हम अपनी विवेक-शक्तिका उपयोग नहीं कर सकते, तबतक हम इस राष्ट्रको अभीष्ट लक्ष्यतक नहीं ले जा सकते। लेकिन हमको अपनी परम्परा नहीं भुला देनी चाहिए। जो वक्ता मंचपर भाषण देनेके लिए खड़ा हुआ हो उसका अपमान नहीं करना चाहिए। मैंने गुजरातके छात्रोंको जो उपाय बताया था वही आपको भी बताता हूँ। यदि आपका खयाल हो कि कोई वक्ता ढोंगी है――और भारतमें अब भी ढोंगी वक्ता हैं――आपका खयाल हो कि कोई वक्ता ऐसा है जो सच्चा नहीं है, तो भी आपको उसके भाषणमें सीटी बजानेका कोई अधिकार नहीं है। आप मंच और सभाको छोड़कर जा सकते हैं, इस बातका आपको अधिकार है। जब छात्रोंने श्रीमती बेसेंटके[२]भाषणमें सीटियाँ बजाईं तो उससे मुझे बहुत ही दुःख हुआ। मैं अनुभव करता हूँ कि उन छात्रोंने जो अपनेको असहयोगी कहते हैं, इस देशकी अधिकतम कुसेवा की, और ऐसा काम किया जो असहयोगकी दृष्टिसे कलंककी बात है। मैंने उनसे कहा कि यदि वे श्रीमती बेसेंटका भाषण नहीं सुनना चाहते थे, यदि उनको ऐसा लगा था कि श्रीमती बेसेंटके कथनसे उनको क्षोभ होता है, यदि उनको लगा था कि श्रीमती बेसेंटने अपने ध्येयके प्रति न्याय नहीं किया है तो उनको इस बातका हक था कि वे सभासे चले जाते; किन्तु एक

  1. यहाँ चित्तरंजन दास बीचमें बोले। उन्होंने कहा कि विपिनचन्द्र पालने जिन-जिन सभाओंमें भाषण दिया था उनमें वे मौजूद थे। उन्होंने छात्रोंको ऐसी सलाह कभी नहीं दी।
  2. एनी बेसेंट (१८४७-१९३३); प्रसिद्ध थियोसोफिस्ट और वक्ता; बनारसमें केन्द्रीय हिन्दू कालेज १८९८ में स्थापित किया; १९०७-१९३३ तक ‘थियोसोफिकल सोसायटी’ की अध्यक्ष; ‘इंडियन होम रूल लीग’ की संस्थापिका और १९१७ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी अध्यक्ष।