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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आदरणीय महिलाके प्रति असम्मान दिखानेका उनको कोई हक नहीं था। मैं तो कहता हूँ कि यदि कोई ढोंगी वक्ता मंचपर खड़ा हो ही जाये तो भी शिष्टताका तकाजा है कि आप उसका भाषण भी अवश्य सुनें।

ढाकाके नवयुवको, मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप असहयोगके झंडेके नीचे आ जायें। कृपया यह समझ लें कि यह लड़ाई आत्म-शुद्धिकी लड़ाई है। इसका तकाजा है कि आप सब संयम रखें, खुद अपने दिमागसे सोचें और किसीके पीछे आँख मूंद कर न चलें। मैं आपसे कहता हूँ कि आप दूसरोंकी रायके मुताबिक न चलें। मैं आपसे जो कह रहा हूँ, यदि आप भी ऐसा ही अनुभव करते हों और आपका हृदय भी यही गवाही देता हो, और यदि आपने मेरी बात पूरी तरह समझ ली हो, तभी आपका अपने स्कूलों और कालेजोंको छोड़ना ठीक है। जैसा मैंने कहा है वैसा ही यदि आप भी अनुभव करते हो तो आपका यह पुनीत कर्त्तव्य होगा――क्योंकि आपके माता-पिता शायद मेरे कथनका समर्थन न करें――कि यदि वे आपको स्कूलों और कालेजों को न छोड़नेके लिए कहें तो आप आदरपूर्वक उनकी आज्ञाको अमान्य कर दें। लेकिन इस अवज्ञाकी शर्त पूर्ण विनम्रता और पूर्ण आत्मसंयम है, माता-पिताका अपमान करता नहीं। मैं भारतीय माता-पिताओंको जानता हूँ। इसलिए मैं जानता हूँ कि आप भारतके युवकगण सच्चे होंगे तो अपने माता-पिताको राजी कर सकेंगे और उनसे अपने स्कूल और कालेज छोड़नेकी अनुमति भी ले सकेंगे। मेरा खयाल है कि भारतीय माता-पिताओंको स्कूल और कालेज छोड़नेके विरुद्ध आपको चेतावनी देनेका पूरा अधिकार होगा। वे आपसे उचित रूपसे कह सकते हैं कि आप किसी भले या बुरे वक्ताके जोशीले भाषणसे प्रवाहमें न बह जायें। इस प्रकार प्रवाहमें बह जाना आपका स्वभाव रहा है; इसलिए यदि आपके माता-पिता आपको चेतावनी दें तो आप उसपर पचास बार विचार करें। अक्लमंदी इसीमें है।

भारतीय युवको, यदि आप मेरी तरह यह मानते हों कि इन स्कूलों और कालेजोंको बिना शर्त छोड़ना आपका पवित्र कर्त्तव्य है, तो मैं आपसे कहता हूँ कि आप उसका तुरन्त पालन करें। लेकिन आप अपने कमरोंमें बैठकर ईश्वरसे प्रार्थना करें और देखें कि क्या वह सचमुच आपके अन्तःकरणकी आवाज है। और यदि आपको सन्तोष हो जाये, तो आप अपने माता-पिताके पास जाकर, दूसरे बड़े-बूढ़ों और अपने अध्यापकोंके पास जाकर उसकी फिर परीक्षा करें और यदि फिर भी आपका पूरा समाधान न हो पाये और आप यह अनुभव करें कि आपको इन स्कूलों और कालेजों को छोड़ ही देना चाहिए तो वैसी स्थितिमें अपने माता-पिता के प्रति पूरा आदर रखते हुए भी इन स्कूलों और कालेजोंको छोड़ देना आपका पुनीत कर्त्तव्य है। यह हिन्दू शास्त्रोंकी आज्ञा है; यह ‘कुरान शरीफ' की आज्ञा है। यदि आपको सन्तोष हो, तो आपको अपने स्कूल कालेज छोड़नेमें कोई झिझक नहीं होगी।

एक बात और; उसके बाद में भाषण समाप्त कर दूँगा। आप पुराने स्कूलों और कालेजोंकी जगह नये स्कूल और कालेज चाहते हैं। मैं इस बातको जानता हूँ। जब मैं आपसे कहता हूँ कि आप बिना शर्त स्कूलों और कालेजोंको छोड़ दें, तब मैं