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‘गुरखा’ जहाजपर बातचीत

भा०: अब अदालतोंके प्रश्नको लें। अदालतोंको बन्द करवाकर, वकीलोंसे उनकी वकालत छुड़ाकर आप क्या करना चाहते हैं?

गां०: सरकारकी प्रतिष्ठाको तोड़ना चाहता हूँ। ये अदालतें और स्कूल सर- कारकी प्रतिष्ठाकी नींवको मजबूत बनाये रखने के साधन हैं। सरकार इन्हीं वस्तुओंके द्वारा लोगोंको मोहजाल में फँसा रही है।

भा०: तब झगड़ोंका निबटारा किस तरह होगा?

गां०: मैं अपना अनुभव कहूँ? अपनी वकालतके दौरान ७५ प्रतिशत मामलोंका फैसला मैंने घर बैठे-बैठे ही किया। घर बैठे-बैठे झगड़े निपटाने में मैं सिद्धहस्त माना जाता था। अपनी निष्पक्षताके लिए मैं वहाँ प्रसिद्ध हो गया था। फलत: मेरी ओरसे विरोधी पक्षको नोटिस मिलनेपर तुरन्त ही वह मेरे पास आता और फैसला करवानेकी माँग करता। इसलिए अनेक लोगोंको दो वकील रखने पड़ते। अगर उन्हें मेरी बात रास नहीं आती थी तो वे लड़नेके लिए दूसरे वकीलके पास जाते थे। मैं तो सिर्फ साफ मामलोंको ही हाथमें लेता था।

अं०: क्या आपका यह खयाल है कि काफी लोग इसके अनुसार चलेंगे?

गां०: ५० प्रतिशत मुकदमा लड़नेवाले लोग अदालतोंको छोड़ देंगे, परिणामतः ५० प्रतिशत मुकदमे कम हो जायेंगे। मैंने सुना है कि ५० प्रतिशत मुकदमें तो दलाल करवाते हैं। श्री दास कहा करते थे कि कलकत्तमें ऐसी बात नहीं है। लेकिन दूसरोंने मुझे बताया कि श्री दासको इस बारेमें ठीक पता नहीं है।

कलकत्तेके एक वकील जो खिड़कीसे इस संलापको सुन रहे थे, बोल उठे: ‘मुफस्सिल’ तो “दलालों” से ही भरी हुई हैं। वहाँके ५० प्रतिशत मुकदमें इन दलालोंके ही बनाये हुए होते हैं, इस बातकी गवाही में देता हूँ।

भा०: होगा; लेकिन में शहरकी बात करता हूँ। 'बंगाल व्यापार संघ' ने एक ‘पंच फैसला न्यायाधिकरण’ की स्थापना की है तथापि व्यापारियोंका दलालोंके पास जाना कम नहीं हुआ है ।

गां०: हो सकता है, क्योंकि वकीलोंकी संख्या कम नहीं हुई है।

भा०: एकाध व्यक्तिके वकालत छोड़नेका असर क्या होगा?

गां०: तुलनात्मक दृष्टिसे देखें तो कुछ-न-कुछ असर अवश्य होगा। पंडित मोतीलाल नेहरूके वकालत छोड़ने से सरकारकी प्रतिष्ठाकी गिरती हुई इमारतको एक धक्का लगा है, ऐसा मैं अवश्य कहूँगा। सर हारकोर्ट बटलरसे पूछकर देखें।

अं०: आप मुकदमा चलानेवालोंको भी अदालतोंमें जानेसे रोक रहे हैं, यही बात है न?

गां०: जी हाँ।

अं०: लेकिन ऐसा कैसे सम्भव होगा? आपमें तो उनको विश्वास था। आप तो उनका ही काम लेते थे जो निर्दोष होते थे । आप उनके बारेमें तो कुछ नहीं जानते जिनका हृदय स्वच्छ नहीं है और जिनके हाथ रंगे हुए हैं। ऐसे लोगोंका आप क्या करेंगे? ऐसे मामले तो कदाचित् ही होते होंगे जिनमें दोनों पक्ष स्वच्छ और पवित्र हों।