पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/१६९

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७८. पत्र: के० के० भट्टाचार्यको

[१६ दिसम्बर, १९२०][१]

प्रिय महोदय,

मुझे आपका गत २९ सितम्बरका पत्र अभी-अभी मिला। आप मुझे हड़तालका कुछ और विवरण तथा ‘टाइम्स ऑफ आसाम’ की कतरन भेज सकें तो अच्छा हो।

आपके विश्वस्त

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७२८५) की फोटो-नकल से।

 

७९. पत्र: सरलादेवी चौधरानीको[२]

१७ दिसम्बर, १९२०

तुम्हें कदाचित् मुझमें कहीं-कुछ घृणा दिखाई देती है और उसके कारण तुम मुझसे थोड़ा विरक्त हो जाती हो; किन्तु इसी कारण मैं तुमको और अधिक प्यार करता। यदि असहयोग में रत होना मेरे लिए कोई राजनीतिक मामला होता तो उसपर तुम्हारा दुःख करना ठीक होता । पर सचाई तो यह है कि वह मेरा धर्म “मैं घृणाकी समस्त शक्तियोंको इकट्ठा करके उनको एक सही दिशामें मोड़ रहा हूँ।” जैसे तिरस्कार उद्धत सत्ताका लक्षण होता है, वैसे ही घृणा दुर्बलताकी निशानी है। यदि मैं अपने देशके लोगोंको इतना-भर समझा सकूँ कि हमें अंग्रेजोंसे डरनेकी जरूरत नहीं है तो फिर हम अंग्रेजोंसे घृणा करना बन्द कर देंगे । वीर पुरुष या स्त्री कभी घृणा नहीं करते। घृणा मूलतः कायरोंका दुर्गुण है। असहयोगका अर्थ है आत्मशुद्धि। जब तुम चीनीको शुद्ध करती हो तब उसका मैल सतहपर आ जाता है। इसी प्रकार जब हम आत्मशुद्धि करते हैं तब हमारी दुर्बलता सतहपर आ जाती है।

 
  1. गांधीजीको श्री भट्टाचार्य द्वारा लिखे गये २९ सितम्बर, १९२० (एस० न० ७२८५) के पत्रपर उत्तर देनेकी यही तारीख दी हुई है।
  2. यह पत्र सरलादेवीके उस पत्रके उत्तरमें लिखा गया था जिसमें उन्होंने गांधीजीके असहयोगमें रत होनेपर दुःख प्रकट किया था और अपना यह मत व्यक्त किया था कि असहयोगका आधार घृणा है। उन्होंने लिखा था: यदि आप घृणाको त्याग देते तो मैं आपको और भी अधिक प्यार करती।