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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किन्तु तुम्हारे पत्रके सम्बन्धमें जो बात अच्छी लगती है वह यह कि तुमने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम, मेरी शुद्धता और मेरी नेकदिलीमें तुम्हारा जो विश्वास है उसपर आधारित। यदि मुझमें ये गुण न हों तो मैं निकम्मा हूँ। तब मैं अपने आपको तुम्हारे उन तमाम त्यागोंके अयोग्य मानूंगा जो तुमने अपने पहले पत्रमें लिखे थे।

तुम्हारे प्रति मेरा जो प्रेम है मैं उसका विश्लेषण करता रहा हूँ। मैंने आध्यात्मिक पत्नीका अर्थ निश्चित कर लिया है। यह स्त्री और पुरुषकी वह सहधर्मिता है जिसमें शारीरिक पक्षका सर्वथा अभाव होता है। इसलिए यह सहधर्मिता भाई-बहन और पिता-पुत्रीमें भी सम्भव है। यह केवल दो ऐसे व्यक्तियोंके बीच सम्भव है जो मनसा, वाचा और कर्मणा ब्रह्मचारी हों। में तुम्हारी ओर इसलिए आकर्षित हुआ कि मैंने अपने और तुम्हारे बीच आदर्शों और आकांक्षाओंकी समानता और पूर्ण आत्म-समर्पणकी भावना देखी। तुम पत्नी हो, क्योंकि तुमने हमारे समान आदर्शका अपनी अपेक्षा मुझमें अधिक विकास देखा। इस आध्यात्मिक सहधर्मिताको कायम रखनेके लिए हमारा पूर्ण एकीकरण आस्था-मूलक नहीं, ज्ञान-मूलक होना चाहिए। यह दो समान आत्माओंका मिलन है। यह सहधर्मिता उस स्थिति में भी सम्भव है जब कोई पक्ष किसी दूसरेसे शारीरिक रूपमें विवाहित हो; किन्तु वह भी तभी जब वे दोनों ब्रह्म-चर्यका पालन करते हों। आध्यात्मिक सहधर्मिता पति और पत्नीके बीच भी सम्भव है। यह शारीरिक सम्बन्धोंसे परे होती है और मृत्युके उपरान्त भी कायम रहती है। मैंने जो कुछ कहा है, उससे सार यह निकलता है कि आध्यात्मिक सहधर्मी इस जीवनमें या भावी जीवन में भी शरीरतः कभी विवाहित नहीं हो सकते; क्योंकि वह सहधर्मिता तो तभी सम्भव है जब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी तरहकी वासना न हो। क्या तुम मेरी वैसी आध्यात्मिक पत्नी हो? क्या हममें वैसी उत्कृष्ट शुद्धता है, वैसा पूर्ण एकीकरण, वैसा पूर्ण आत्मिक संविलय, वैसी आदर्शोंकी समानता, वैसी आत्मविस्मृति, वैसी उद्देश्य-निष्ठा और वैसा पारस्परिक विश्वास है? जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, में तो स्पष्ट कह सकता हूँ कि मेरे लिए तो यह केवल एक आकांक्षा-मात्र है। मैं तुम्हारे साथ ऐसे साहचर्यके अयोग्य हूँ। मुझमें जितनी वैचारिक शुचिता है, उससे कहीं अधिक ऊँची शुचिताकी आवश्यकता है। मैं तुम्हारे साथ उस तरहका पवित्र सम्बन्ध रखने के अयोग्य इसलिए भी हूँ कि मुझे तुमसे बहुत अधिक शारीरिक लगाव है। शारीरिक लगावसे यहाँ मेरा मतलब यह है कि मेरे मनपर तुम्हारी दुर्बलताओंका बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि मैं तुम्हारा आध्यात्मिक पति हूँ और उससे एकात्मभावकी अनुभूति होनी हो तो मुझे तुम्हारा गुरु नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत, तुम्हारे और मेरे बीच तो प्रायः अनेक तीव्र मतभेद भी हो जाते हैं। जहाँतक मैं समझ सका हूँ, हमारा सम्बन्ध भाई-बहिनका है। मुझे तुम्हारा अनुशास्ता बनना होगा और इस प्रकार तुमको झकझोरना होगा। मुझे तुमसे भाईके समान नम्र अनुरोध करना होगा और ऐसे ठीक शब्द चुननेकी सावधानी रखनी होगी, जैसा कि में अपनी सबसे बड़ी बहिह्नको समझाने के लिए करता हूँ। मुझे पिता, पति, मित्र, और