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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहता हूँ कि इस साम्राज्यको मिटाना असम्भव है। यह इसी शर्तपर सम्भव है। शान्तिमय असहयोग परम धर्म है। धर्म और अधर्मके बीच सहयोग कभी नहीं हो सकता। शैतानकी मददको छोड़ना एक बहादुरीका काम है। इसीलिए जमनालाल[१] आज इस सभाके अध्यक्ष हैं। जलते हुए घरको छोड़ते समय हम इस बातका विचार नहीं करते कि घर छोड़ा जाये या नहीं। कौंसिलमें जाकर न खिलाफतके प्रश्नको दुरुस्त किया जा सकता है और न पंजाबके प्रश्नको। स्वराज्य प्राप्तिके द्वारा ही पंजाबको न्याय दिलवाया जा सकता है।

सात करोड़ मुसलमान और तैंतीस करोड़ हिन्दू, एकताके सिवा किसी और तरह साथ नहीं रह सकते।

अभीतक हमने प्रस्ताव पास किये हैं, अब काम करनेका समय आया है। कांग्रेसका अधिवेशन होने से पहले अगर आप कुछ काम करके दिखाना चाहते हैं तो नागपुरके स्कूलों और कालेजोंको खाली कर देना चाहिए।

खापर्डे और मेरे बीच भारी मतभेद हैं, लेकिन उन्हें कोई परेशान करे सो मैं पसन्द नहीं करता। मेरी माँग तो यह है कि मैं जैसी स्वतन्त्रता चाहता हूँ वैसी ही स्वतन्त्रता उन्हें भी मिलनी चाहिए। हम अपने कार्योंका अच्छा नतीजा निकाल कर दिखायेंगे तो खापर्डे और अन्य सभी निश्चत रूपसे हमारे पक्षमें आ जायेंगे।

हममें ऐसी व्यवस्था करने की ताकत होनी चाहिए कि जिससे एक वर्षके भीतर ही हम सारा प्रबन्ध कर सकें। हमें विश्वास रखना चाहिए कि पंजाबके लिए हमें न्याय अवश्य मिल सकेगा। हम डरपोक हैं इसीलिए मुट्ठी-भर अंग्रेज यहाँ राज्य चलाते हैं। ऐसा विश्वासघात भविष्यमें न हो सके, इसके लिए स्वराज्य लेना है। जबतक हम ठोस कार्यके लिए तैयार नहीं होते तबतक कुछ नहीं कर सकते। मेरी समझमें नहीं आता, स्वदेशीमें क्या कुर्बानी है। हमारे लिए यह एक ऐसा अवसर है जो मिस्र और कोरिया के लोगोंको कभी नहीं मिला। हिन्दुस्तान में तीस करोड़ लोग हैं। मिस्र में मुट्ठी भर लोग हैं। समस्त देशोंके लिए हम दोनों भाई पदार्थपाठ हैं। जिस तरह से एक माँके जाये दो भाई रहते हैं, हम वैसे रहते हैं। हम दोनों साफदिल हैं।

[गुजराती से]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५
 
  1. जमनालाल बजाज (१८८९-१९४२); प्रसिद्ध गांधीवादी उद्योगपति जिन्होंने गांधीजीकी रचनात्मक योजनाओंमें भरपूर सहयोग दिया; गांधीजीके निकटतम साथियों और सलाहकारोंमें से एक।