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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विरोधी हो तो मैं देशहितको छोड़नेके लिए तैयार रहता हूँ। अन्त्यजको अस्पृश्य मानना मैं अधर्म समझता हूँ और अधर्मका आचरण करते हुए देशहित करनेकी मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है। मेरी दृढ़ मान्यता है कि देशमें जब सच्चे अर्थोंमें धर्म-जागृति होगी तभी स्वराज्य मिलेगा। ऐसी जागृतिका समय आ गया जान पड़ता है। इसी कारण मैंने एक वर्षके भीतर स्वराज्य प्राप्तिको सम्भव माना है। मेरे यह सब लिखने से आप समझ गये होंगे कि में अस्पृश्यताको अधर्म मानता हूँ और इसी कारण अस्पृश्यताका दोष दूर करनेके कार्यमें रत हूँ।

कोई भी जीव जन्मसे ही अस्पृश्य है और उसे अस्पृश्य दशा में ही मरना चाहिए, मेरी मान्यता है कि यह हिन्दू-धर्म नहीं है, ऐसे अधर्मको धर्मका नाम देना और भी अधिक अधर्म करने जैसा है। व्यवहारमें आज अस्पृश्यता नहीं रह गई है। मैं इसी अस्पृश्यताका गुजरातके हिन्दुओंसे ज्ञानपूर्वक त्याग करनेका अनुरोध कर रहा हूँ। यदि वह धर्म होता और व्यवहारमें उसका लोप हो गया होता तो मैं विद्यापीठमें उसके पुनरुद्धारकी आकांक्षा करता। लेकिन यह अधर्म है ऐसा मानकर ही मैंने विद्यापीठके प्रस्तावका स्वागत किया है और प्रत्येक गुजरातीसे उसका स्वागत करनेकी विनती करता हूँ।

अनेक वर्षोंसे पड़ी हुई कुटेवको दूर करना मुश्किल है, यह मैं समझता हूँ । जो अस्पृश्यताको कुटेव मानकर एकाएक दूर नहीं कर सकते उनके प्रति मुझे हमदर्दी है। लेकिन जो धर्म मानकर उसका पोषण करते हैं उनपर तो मुझे दया ही आती है।

हिन्दू-धर्मके नामपर अथवा शास्त्रके नामपर जो कुछ कहा जाता है वह सब सच है, ऐसा मानना भयंकर है। इसीसे गुजराती हिन्दुओंसे मेरी प्रार्थना है कि वे शंकराचार्यकी अध्यक्षता में हुए प्रस्तावसे भ्रमित न हों।

लेकिन निर्णयोंपर अमल करने में हमें शान्तिका पालन करनेकी बड़ी आवश्यकता है। और असहकार करते हुए तो और भी विशेष रूपसे। शास्त्री वसन्तरामजीके एक लेबसे मुझे पता चला कि उनपर आक्रमण किये जानेकी धमकी दी गई है। हम धार्मिक अथवा अन्य प्रकारके प्रश्नोंका निर्णय मारपीटके द्वारा नहीं कर सकते। विनम्रतापूर्वक दलोलोंके द्वारा ही हम सत्यासत्यका विचार कर सकेंगे। सब तरहके धर्म-संकटका निपटारा लोग अपने-अपने विचारोंको अमलमें लाकर ही कर सकेंगे; वैसा करने से सत्य स्वयमेव तिरकर ऊपर आ जायेगा। आकाशपर धूल उड़ानेसे वह आँखों में आ पड़ती है। यह तर्क देने की भी क्या जरूरत है? जिसे धूल उड़ानेमें रस आता है वह धूल उड़ाकर ही सारासारका अनुभव प्राप्त कर लेगा। अस्पृश्यताके पापसे चिपके रहकर स्वराज्य प्राप्त करनेका प्रयत्न करना आकाशमें धूल उड़ाना है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १९-१२-१९२०