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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर दिये गये हैं।[१] में अधिक जानकारीके अभावमें, इस दमनकारी तरीकेके बारेमें अधिक नहीं कह सकता। परन्तु इतना जानता हूँ कि यदि आन्दोलनको शीघ्र ही सफलता की स्थितितक पहुँचाना है तो उक्त दस्ते भंग करनेका आदेश, सभाओं, इश्तिहारों आदिका निषेध करनेवाली आज्ञा, सबका ईमानदारीसे पालन करना चाहिए। यदि जरूरत हो तो हमें बिना आम सभाओं और इश्तिहारोंके आन्दोलन चला सकनमें समर्थ होना चाहिए। स्वयंसेवक दस्ते भंग करनेके आदेशका विशेष अर्थ नहीं है। संसारमें कोई भी सरकार किसी व्यक्तिको, यदि वह सेवा करना चाहे तो, रोक नहीं सकती। सेवा करने के लिए उसे किसी बिल्लेकी जरूरत नहीं। परन्तु स्वयंसेवकोंको उस तरहका आचरण नहीं करना चाहिए जैसे आचरणकी बात पुलिसके बारेमें कही जाती है। उन्हें, जो व्यक्ति उनके विचारोंसे सहमत नहीं होते, उनको भय नहीं दिखाना चाहिए। वे राष्ट्रके सेवक हैं, मालिक नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-१२-१९२०
 

८३. गोपनीयताका दोष

गोपनीयताकी वृत्ति भारतका एक अभिशाप है। यह अकसर देखनेको मिलती है। किसी अनजान परिणामके भयसे हम फुसफुसाकर बात करते हैं। इस गोपन वृत्तिने मुझे कहीं उतना अधिक परेशान कहीं नहीं किया जितना बंगालमें। वहाँ तो हर कोई आपसे “एकान्त” में ही बात करना चाहेगा। मुझे यह देखकर सबसे ज्यादा दुःख हुआ कि भोलेभाले नवयुवक अपनी बात शुरू करने से पहले चारों ओर निगाह डालते हैं कि कहीं कोई तीसरा व्यक्ति तो उनकी बातचीत नहीं सुन रहा है। हर अजनबी आदमीपर खुफिया होनेका सन्देह किया जाता है। मुझे भी अजनबी लोगोंसे सावधान रहनेकी चेतावनी दी गई है। जब मुझे यह बताया गया कि जिस अज्ञात विद्यार्थीने विद्यार्थियोंकी सभाकी अध्यक्षता की थी, वह खुफिया विभागका था तब मेरा दुःख सीमापर पहुँच गया। में कमसे-कम ऐसे दो प्रमुख नेताओंके नाम जानता हूँ, जो उच्च भारतीय समाजमें सरकारके गुप्तचर समझे जाते हैं।

मैं ईश्वरका आभार मानता हूँ कि विगत अनेक वर्षोंसे में गोपनीयताको पाप मानने लगा हूँ, विशेष रूप से राजनीतिमें। हम जो कुछ भी कहते और करते हैं, यदि उसमें ईश्वरकी उपस्थितिको साक्षीके रूपमें मानते होते तो हमारे पास संसारमें किसी से गोपनीय रखनेको कुछ भी न होता; क्योंकि तब हम अपने सिरजनहारके सामने अपने मनमें भी दूषित विचार न रखते, उन्हें मुंहसे कहनेका तो प्रश्न ही नहीं उठता। गन्दगी ही गोपनकी अपेक्षा रखती है। मनुष्यकी प्रवृत्ति गन्दगीको छिपानेकी होती है। हम गन्दी चीजें देखना या छूना नहीं चाहते, उन्हें हम दृष्टिसे परे कर

  1. देखिए “तार :आसफ अलीको”, ११-१२-१९२० या उसके बाद।