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गोपनीयताका दोष

देना चाहते हैं। ऐसा ही हमारे बोलने में भी होना चाहिए। मैं कहूँगा कि हम जिन विचारोंको दुनियासे छिपाना चाहें, उन्हें सोचनेसे भी बचें।

छिपानेकी इस इच्छाने हममें कायरता पैदा की है और हमें बोलते समय कपट और दुराव-छिपावका सहारा लेनेको बाध्य कर दिया है। इस घातक और अपमानकारी खुफिया विभागसे मुक्ति पानेका सबसे अच्छा और शीघ्रताका उपाय हमारे लिए यही है कि हम एक बार हर बातपर खुले तौरसे विचार करनेका अन्तिम प्रयत्न करें, संसारके किसी भी व्यक्तिसे गुप्त बातचीत न करें और खुफिया पुलिससे डरना समाप्त कर दें, जिसे हमारे समस्त विचारों और योजनाओंको जाननेका अधिकार है। हमें उसकी उपस्थितिकी अपेक्षा करनी चाहिए और हर व्यक्तिसे अपने मित्र-जैसा बर्ताव करना चाहिए। मैं जानता हूँ कि अपनी बड़ीसे-बड़ी योजना खुले तौरपर तैयार करनेसे मुझे अत्यन्त सन्तोषजनक परिणाम मिले हैं। मेरे करीब कहीं कोई जासूस न हो, इस चिन्तासे कभी मैंने एक मिनट भी अपनी शान्ति नष्ट नहीं की। लोगोंको शायद मालूम नहीं होगा कि मैं जबसे भारतमें रह रहा हूँ, तबसे खुफिया विभागके लोग बराबर मेरे पीछे लगे रहे हैं। इससे मैं कभी चिंतित तो नहीं ही हुआ, उलटे खुफिया विभागके इन सज्जनोंसे मैंने मित्रके-जैसे काम लिये हैं; और इनमें से कई लोगोंने इस बातके लिए मुझसे क्षमा भी माँगी है कि उन्हें मजबूरन मुझपर जासूसी करनी पड़ी। आम तौरपर तो ऐसा ही होता रहा है कि मैंने उनकी उपस्थितिमें जो कुछ कहा है, वह पहले ही संसारके समक्ष प्रकाशित हो चुका है। परिणाम यह कि अब उनकी उपस्थितिपर मेरा ध्यान भी नहीं जाता और में नहीं समझता कि सरकारने अपने खुफिया विभागके जरिये मेरी कार्रवाइयोंपर निगाह रखकर कोई खास जानकारी हासिल की है। मेरी राय है कि ये एजेंट महज खानापूरीके लिए ही मेरे साथ लगे रहते हैं। वे मुझे कभी परेशान तो नहीं ही करते। मैं बंगालके, और बंगाल ही क्यों, सारे भारतके प्रत्येक नवयुवकके लाभार्थ अपने ये अनुभव प्रस्तुत करता हूँ। कोई यह न माने कि मुझपर चिढ़ पैदा करनेवाली निगरानी न रखनेका कारण मेरी सार्वजनिक स्थिति है; इसका कारण तो मेरे किसी काममें दुराव-छुपावका न होना है। यह बात बड़ी आसानीसे समझी जा सकती है कि जिस क्षण आप जासूसकी उपस्थिति से डरना बन्द कर देते हैं और इसलिए उसके साथ, उसे जासूस मानकर बरतना छोड़ देते हैं, उसी क्षणसे उसकी उपस्थिति आपको नागवार नहीं लगती। जल्दी ही सरकार खुफिया विभाग रखने में शर्मिंदगी महसूस करने लगेगी, नहीं तो खुफिया पुलिस ही ऐसे कामसे आजिज आ जायेगी, जो उपयोगी नहीं बचता।

असहयोग तत्त्वत: एक शुद्धिकी प्रक्रिया है। वह लक्षणोंके बजाय कारणों से सम्बन्ध रखता है। खुफिया विभाग गोपनीयताका एक लक्षण है, और गोपनीयता उसका कारण है। गोपनीयताका निवारण बिना किसी अन्य प्रयत्नके खुफिया विभागको पूरी तरह समाप्त कर देगा। समाचारपत्र अधिनियम[१](प्रेस ऐक्ट) कायरताके रोगका एक लक्षण है। यदि हम अपने इरादोंको निर्भीकतासे घोषित करें तो समाचारपत्र अधि-

  1. १९१० का।