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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नियम अमलके अभाव में स्वयं ही समाप्त हो जायेगा। शुरुआत करनेवालोंको अपने तथाकथित दुस्साहसके लिए कष्ट भोगना पड़ेगा। मैंने सुना है कि कलकत्ताके “सर्वेन्ट” को इस धृष्टताके लिए चेतावनी दी गई है कि उसने ‘यंग इंडिया’ का[१]वह लेख पुनःप्रकाशित किया था, जिसमें श्री राजगोपालाचारी द्वारा मतदाताओंको दिये गये सराहनीय निर्देशोंका सार था। मैंने यह भी गौर किया है कि कलकत्ते में मेरे भाषणके सबसे अधिक प्रभावशाली अंश, स्पष्ट ही, सेंसरके भयसे समाचारपत्रोंने छोड़ दिये हैं। यदि सम्पादक अपने विचार या जिन विचारोंको वह सही मानता है, परिणामके भयसे डरे बिना स्वतन्त्रतापूर्वक प्रकाशित नहीं कर सकता, तो मैं पत्रका पूरी तरह बन्द हो जाना बेहतर मानूँगा।

यद्यपि असहयोगको, समाचारपत्रोंकी जहाँ जो भी मदद मिले उसका प्रसन्नता से उपयोग करना है, फिर भी अपनी मूल प्रकृतिके अनुसार उसे समाचार-पत्रोंपर निर्भर नहीं करना है। इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि हम जो भी विचार प्रकाशित करते हैं उससे सरकारको बुरा तो लगनेवाला है ही। जनतामें ज्यों-ज्यों इसका प्रचार बढ़ेगा, सरकार अपने अस्तित्व के लिए इसे बन्द करने की कोशिश करेगी। हम इस सरकार अथवा किसी भी सरकारसे आत्महत्या कर लेनेकी आशा नहीं कर सकते। उसे या तो अपने-आपमें सुधार करना होगा या फिर दमनका सहारा लेना पड़ेगा।

सामान्य तौरपर कोई भी निरंकुश शासन-तन्त्र, जैसी कि हमारी सरकार है, अपने-आपको सुधारने से पहले दमनका सहारा अवश्य लेगा। जो सरकारको नष्ट कर सकते हैं, या उसे पश्चात्ताप करनेके लिए विवश कर सकते हैं, ऐसे शक्तिशाली विचारोंको रोक देना तो सरकारी दमन शक्तिका सबसे मामूली प्रयोग होगा। इसलिए जबतक सभी समाचारपत्र निडर नहीं बन जाते, परिणामोंकी परवाह न करके केवल अपनी स्वतंत्रताकी रक्षा के लिए विचारोंसे असहमत होते हुए भी उनको प्रकाशित नहीं करते, तबतक हमें उनके प्रसारके लिए अन्य तरीके ढूंढ़ने ही होंगे। ऐसा कोई भी सम्पादक, जिसके पास अपने मौलिक विचार हैं या जिसके पास भारतकी बुराइयोंको दूर करने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव हैं, उन्हें प्रभावशाली ढंगसे लिख सकता है। सैकड़ों लोग उसकी नकल करके सैकड़ों प्रतियाँ तैयार कर सकते हैं, और इससे भी ज्यादा संख्या में लोग हजारों श्रोताओंको ये विचार पढ़कर सुना सकते हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि असहयोगका समर्थन करनेवाले सम्पादकगण किसी भी हालत में समाचार-पत्र अधिनियमके डरसे अपने विचार व्यक्त करनेसे नहीं चूकेंगे। उन्हें समझना चाहिए कि अपने विचार छिपाना पाप है, और ऐसा कोई समाचारपत्र निकालना जो उनके विचारोंको दमित करता हो, उनकी शक्तिका अपव्यय है। किसी सम्पादकके लिए अपने श्रेष्ठतम विचारोंको दबाना, अपने पेशेका, अपने धर्मका अनादर करना है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-१२-१९२०
 
  1. १० नवम्बर, १९२० का।