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८४. भाषण: नागपुरको बुनकर परिषद्में

२५ दिसम्बर, १९२०

अत्यन्त कार्यव्यस्त होने पर भी इस सभाके अध्यक्ष पदको स्वीकार करनेसे इनकार नहीं कर सका। मेरा धन्धा बुनकरका न होनेपर भी अब मैं अपने आपको किसान-बुनकर समझता हूँ। अदालत में भी मैंने अपना यही धन्धा बताया है। मुझे लगता है कि जबतक बुनकरोंकी उन्नति नहीं होती तबतक हिन्दुस्तानकी उन्नति असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। इसीसे कांग्रेसके पिछले विशेष अधिवेशन में इस विषयकी कुछ चर्चा की गई थी। हिन्दुस्तान जिस समय गुलामीकी जंजीरोंमें बँधा उस समय हिन्दुस्तान में जैसा और जितना कपड़ा बनता था वैसा और उतना कपड़ा दुनियाके किसी अन्य देशमें नहीं बनता था। और इतनेपर भी तब यहाँ कपड़ेका एक भी कारखाना न था। उस समय खादीसे लेकर ढाकाकी मलमलतक तरह-तरहका कपड़ा यहाँ बनता था। उससे हिन्दुस्तानकी आवश्यकता पूरी होती थी और अतिरिक्त कपड़ा विदेशोंको भेज दिया जाता था। बाहरके देशोंके लोग भारतमें पर्यटनके लिए खिचे चले आते थे। कताई मशीनके आविष्कर्ता हाग्रन्जकी अपेक्षा पवित्र चरखेकी खोज करनेवाले व्यक्तिने अधिक प्रतिभाका परिचय दिया। हिन्दुस्तान में तो उससे बढ़कर आविष्कारकी प्रतिभाका परिचय किसी अन्य व्यक्तिने नहीं दिया। जिस समय हिन्दुस्तान खुशहाल था उस समय मानों घर-घरमें सूतका कारखाना था। विधाताने यह सोचा था कि अगर हिन्दुस्तानको स्वतन्त्र रहना है तो हिन्दुस्तानकी स्त्रियोंको यह समझ लेना चाहिए कि प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा सूत तैयार करना उनका पवित्र धन्धा है। इसी कारण उसने सूत कातनेवाली किसी अलग कौमकी रचना नहीं की; प्रत्युत सब स्त्रियोंके लिए सूत कातना अनिवार्य कर दिया। ईस्ट इंडिया कम्पनीने जिस दिन भारतमें कदम रखा उसी दिनसे भारतकी हालत गिरने लगी। तभीसे बुनकरों और कत्तिनोंने अपना-अपना धन्धा छोड़ना आरम्भ कर दिया। चम्पारनमें (अभी-अभीतक) जिस तरह लोगोंसे नीलकी पैदावार ले ली जाती थी, उसी तरह उन दिनों लोगोंसे सूत माँगा जाता था और वह भी इतना अधिक कि लोगोंने तंग आकर अपनी उंगलियाँ ही काट डालीं। इसके बाद यहाँ लंकाशायरका कपड़ा आने लगा। यदि आप धर्मका पुनरुद्धार करना चाहते हैं तो आप प्रायश्चितस्वरूप कातने और बुननेके प्राचीन धन्धेको पुनरुज्जीवित करें। हम धर्माचरण करना भूल गये, इसीसे हम स्वदेशीके नामपर दुराचरण कर रहे हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ कि धर्मरक्षाके लिए आप नया सूत तैयार करें, नया कपड़ा बनायें। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो हमें बाहरसे कपड़ा अवश्य मँगाना पड़ेगा। श्री फजलभाई[१] और श्री वाडियाका[२] कहना है कि अभी हम पचास वर्षतक अपनी जरूरतका कपड़ा तैयार नहीं कर सकते। गोखलेजी इसे सौ

  1. बम्बईके मिल-मालिक।