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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सालतक असम्भव मानते थे। यह इन लोगोंकी भूल है। उन्हें यह नहीं मालूम थाकि हिन्दुस्तानके प्रत्येक घरमें चरखा और करघा रखा जा सकता है।

जबतक सूत कातने और बुनने की प्रवृत्ति प्रचलित नहीं होती तबतक स्वदेशी-भंडारकी स्थापना करना देशहित नहीं, बल्कि पाप है। मुझे जो रूमाल दिया गया है उसमें विदेशी सूत काममें लिया गया है।

मुझे यहाँ बुनकर बहुत कम संख्या में दिखाई दे रहे हैं। बुनकरोंके तीन वर्गीमें से तीसरे वर्गके अस्पृश्य लोग यहाँ दिखाई नहीं दे रहे। मुझे एक सज्जनने लिखा था कि उन लोगोंको प्रवेश नहीं करने दिया जायेगा। मैंने कहा कि अगर आप उन्हें प्रवेश नहीं करने देंगे तो मैं चला जाऊँगा। जब आप दूसरा अधिवेशन करें तब इन बुनकरोंको अवश्य बुलाएँ।

आप अपने धन्धेको जिस ढंगसे चलाते हैं वह ठीक नहीं है। अगर आप इसे देशके लिए ही चलाना चाहते हैं तो आप नया सूत तैयार करके अथवा तैयार करवाके उससे कपड़ा बुनें। उससे कपड़ा बुनने में दिक्कत तो होगी, लेकिन उतनी दिक्कत उठानी चाहिए। हिन्दुस्तानके बालक और बालिकाएँ अगर रोज एक घंटा सूत कातें तो जितनी कपास हम उत्पन्न करते हैं वह सब सूतके रूपमें आ जाये। आज हिन्दुस्तानकेलिए महीन कपड़ा बनाने के लिए आग्रह करना मैं अपना धर्म नहीं समझता। मैं चाहता हूँ कि आज चारों ओर जो शोकाग्नि प्रज्ज्वलित है, अगर मेरा वश चले तो, मैं उसमें भारतके स्त्री-पुरुषोंको होम दूँ। बुनकरोंसे मेरा कहना है कि वे जो वस्त्र पहनते हैं वे उनके अपने बनाये हुए नहीं हैं, यह अत्यन्त खेदकी बात है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०-१-१९२१
 

८५. भाषण: नागपुरके अन्त्यज सम्मेलन में

२५ दिसम्बर, १९२०

इस सभाका अध्यक्ष पद ग्रहण करके मुझे बड़ी खुशी हुई है।[१]

अन्त्यजोंसे इतर वर्गोंके लोगोंको इस सभा में उपस्थित देखकर मुझे बहुत प्रसन्नताहो रही है।

मैं अनेक वर्षोंसे अन्त्यज-वर्गकी स्थितिका अध्ययन कर रहा हूँ। इस विषयपर मैं अपने यहाँके बड़े-बड़े सुधारकोंसे भिन्न विचार रखता हूँ। सुधारक जिस ढंगसे कार्य करते हैं, मैं उस ढंग से काम नहीं करता। मैं जबसे हिन्दुस्तान आया तबसे में सुवारकोंकी कार्य-पद्धतिपर गौर करता आ रहा हूँ। लेकिन मैं जो कार्य कर रहा हूँ

  1. यह भाषण गांधीजीने हिन्दीमें दिया था जो उपलब्ध नहीं है। भाषण आरम्भ करनेसे पहले गांधीजीने श्रोताओंसे यह पूछा था कि क्या वे हिन्दी समझते हैं। श्रोताओंने इसका स्वीकारात्मक जवाब दिया था।