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भाषण: नागपुरके अन्त्यज सम्मेलन में

उसमें कोई कमी है अथवा दूसरों द्वारा किया गया कार्य मेरे कार्यकी अपेक्षा अच्छा है, ऐसा मुझे महसूस नहीं हुआ। उसमें कमी हो सकती है लेकिन मेरा अपना विश्वास तो यही है कि उसमें कोई कमी नहीं है।

मैं [अस्पृश्यता दूर करने के लिए] जो करता हूँ वह कुछ इस तरह है। [मैं मानता हूँ कि] अस्पृश्यता पाप है, अतएव इस पापको दूर करना चाहिए। अस्पृश्यताको हटाना में अपना कर्त्तव्य समझता हूँ, लेकिन उसे अन्त्यजोंके बीचमें से नहीं, इतर वर्गके हिन्दुओं में से हटाया जाना चाहिए। अस्पृश्यता हिन्दू-धर्मके शरीरपर गुल्मके समान अतिवृद्धि है। मद्रासमें एक स्थानपर भाषण देते हुए मैंने कहा था कि जैसे हमारे साम्राज्य में बहुत दुष्टता दिखाई देती है और हालाँकि मैं इसको दूर करना चाहता हूँ किन्तु कर नहीं पाता; वैसे ही हिन्दू-धर्म में प्रविष्ट इस अस्पृश्यताको मैं दुष्टतापूर्ण मानता हूँ [और हटाना चाहता हूँ]।

स्वर्गीय गोखलेने दक्षिण आफ्रिका वहाँके सब तथ्योंको जानने के बाद कहा था कि “हमारी हालत इतनी बुरी क्यों न हो?” जिस तरह हम अन्त्यजोंको अस्पृश्य समझते हैं उसी तरह यूरोपकी जनता भी हमें, हिन्दू-मुसलमान सबको अस्पृश्य समझती है। उनके साथ रहनेकी हमें अनुमति नहीं है, हमें उनके जितने अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं। हिन्दू- समाजने अन्त्यजोंका जितना बुरा हाल किया, उतना दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंने भारतीयोंका किया है। भारत से बाहर जितने ब्रिटिश उपनिवेश है उनमें भी हमारे साथ गोरोंका व्यवहार वैसा ही है, जैसा हिन्दुओंका अन्त्यजोंके प्रति है। इसीलिए श्री गोखलेने कहा था कि “हमें अन्त्यजोंके प्रति दुष्टतापूर्ण व्यवहारका फल मिल रहा है; समाजने भारी अपराध किया है, भारी दुष्टताका परिचय दिया है इसीके फलस्वरूप दक्षिण आफ्रिकामें हमारी दुर्गति हुई है।” मैंने तुरन्त ही उनकी इस बातको स्वीकार कर लिया। यह बात बिलकुल सच थी। उसके बाद मुझे जो अनुभव हुए हैं, उनसे इस बातकी पुष्टि होती है।

मैं स्वयं हिन्दू हूँ, मैं दावा करता हूँ कि मैं एक कट्टर हिन्दू हूँ। उसमें भी खासकर मैं यह दावा करता हूँ कि मैं सनातनी हिन्दू हूँ। आज गुजरातमें हिन्दू-समाजके साथ मेरा जबर्दस्त झगड़ा चल रहा है। हिन्दू समाज, विशेषतः वैष्णव समाज मेरे हिन्दू होनेके दावेको मानने से इन्कार करता है; तथापि मैं अपने दावेपर दृढ़ हूँ और कहता हूँ कि मैं सनातनी हिन्दू हूँ। अस्पृश्यता हिन्दू समाजका बहुत बड़ा दोष है। अन्य और बहुत सारे दोष हैं। लेकिन उन्हें आप यदि आज अथवा हजार साल बाद दूर करें तो भी वह क्षम्य होगा। लेकिन मैं अन्त्यजोंकी अस्पृश्यताकी बातको सहन नहीं कर सकता, उसे बरदाश्त करना सम्भव नहीं है। हिन्दू समाजका यह कर्त्तव्य है कि वह अस्पृश्यताको दूर करनेके लिए भारी तपश्चर्या करे। मैंने पहले भी कहा है और आज एक बार फिर हिन्दू समाजसे कहता हूँ कि जबतक हिन्दू समाज अस्पृश्यताके पापसे मुक्त नहीं होता तबतक स्वराज्यकी स्थापना होना असम्भव है। यदि आपको मेरे ऊपर विश्वास हो तो मैं आपसे कहूँगा कि अन्त्यजके अस्पृश्य बने रहनेमें मुझे जितनी वेदना होती है उससे कहीं अधिक वेदना हिन्दू-धर्ममें अस्पृश्यता बने रहनेके