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भाषण: कांग्रेसके नये सिद्धान्तपर

के लिए प्रयत्न करें। इसके अतिरिक्त उनकी और कोई कामना न हो। मैं आप सबसे उनका अनुकरण करने की अपील करूँगा जिन्होंने क्षोभका अनुभव किया था और जिन्हें ऐसा लगा था कि मानों उनके सिर तोड़ दिये गये हैं। मैं जानता हूँ कि कांग्रेसके विशेष अधिवेशनमें[१] हमने जिस महान संघर्षका सूत्रपात किया है, उसका अन्त होनेसे पहले शायद हमें खूनके समुद्रमें नहाना होगा; परन्तु हमारे बारेमें या हममें से किसीके लिए भी कोई यह न कहने पाये कि रक्तपातके दोषी हम हैं। आप ऐसा आचरण करें जिससे आगे आनेवाली पीढ़ियाँ यही कहें कि हमने कष्ट झेले, हमने किसी दूसरेका नहीं अपना ही रक्त बहाया; और इसलिए मुझे यह कहनेमें कोई संकोच नहीं है कि मैं उन लोगोंके प्रति अधिक सहानुभूति नहीं दिखाना चाहता जिनके सिर टूटे या जिनके बारेमें बताया जाता है कि उनकी जानको भी खतरा था। इससे क्या फर्क पड़ता है?कमसे-कम, अपने देशवासियोंके हाथों मरना किसी अन्य मृत्युसे कहीं बेहतर है। हमें किस बातका और किससे बदला लेना है? इसलिए मैं आपमें से हर व्यक्तिसे कहता हूँ कि यदि किसी भी समय किसी देशभाईके खिलाफ आपका खून खौले――चाहे वह देशभाई सरकारी नौकरीमें, गुप्तचर या खुफिया विभागमें ही क्यों न हो――तो आप इस बातकी सावधानी बरतेंगे कि आप नाराज नहीं होंगे और चोटके बदले चोट नहीं करेंगे। समझ लीजिए, जिस क्षण आप किसी जासूसकी चोटका जवाब देते हैं, आपका उद्देश्य विफल हो जाता है। आपका आन्दोलन अहिंसात्मक आन्दोलन है, और इसलिए मैं आपमें से प्रत्येकसे कहता हूँ कि बदलेमें चोट न करें वरन् अपना सारा क्रोध काबू में रखें, उस क्रोधको मनसे दूर करें, और तब आप अधिक बहादुर आदमी बनेंगे। मैं यहाँ उन लोगोंको बधाई देता हूँ, जिन्होंने अध्यक्षके पास जाने और विवादको उनके सामने रखनेसे अपने आपको रोका है। इसलिए मैं उन लोगोंसे, जो मनमें अन्यायका अनुभव करते हैं, कहूँगा कि अगर वे उसे भूल गये हों तो अच्छा ही किया है, और यदि वे नहीं भूल सके हों तो मैं उनसे वह बात भूल जानेकी कोशिश करनेका अनुरोध करूँगा――और यही वह सबक है जिसकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता था।

यदि आप इस प्रस्तावको पास करना चाहते हैं तो केवल जोशके साथ इसके पक्षमें ‘हाँ’ कह कर ही पास न करें; हालांकि में इस प्रस्तावके लिए आपकी उत्साह-पूर्ण स्वीकृति भी चाहता हूँ, परन्तु मैं चाहता हूँ कि इस प्रस्तावको पास करते समय आपके मनमें यह विश्वास और संकल्प हो ――ऐसा विश्वास और संकल्प जिसे इस धरतीपर कोई शक्ति डिगा न सके ――कि आप शीघ्रसे-शीघ्र स्वराज्य हासिल करने-को कटिबद्ध हैं और आप स्वराज्य उन्हीं तरीकोंसे पाना चाहते हैं जो उचित हैं, सम्माननीय हैं, अहिंसात्मक हैं और शान्तिपूर्ण हैं। आपने इस बातका निश्चय किया है। आपने निश्चय किया है कि जहाँतक आज हम देख सकते हैं, हम लोग इस सरकारसे हथियारोंसे संघर्ष नहीं कर सकते, परन्तु उस शस्त्रसे लड़ सकते हैं जिसे मैंने बहुधा आत्माकी शक्ति कहा है। वह आत्मिक शक्ति किसी एक व्यक्ति या संन्यासी या तथाकथित किसी संतकी कोई निजी पूंजी नहीं है। आत्माकी शक्ति प्रत्येक मान-

  1. जो कलकत्तामें सितम्बर १९२० में हुआ था।