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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वकी――चाहे वह स्त्री हो या――पुरुष――सम्पत्ति है, और इसलिए मैं अपने देशवासियोंसे कहता हूँ कि यदि वे यह प्रस्ताव स्वीकार करना चाहते हैं तो इसे उसी दृढ़ संकल्पके साथ स्वीकार करें। वे यह समझें कि इसका शुभारम्भ मैंने जिन परिस्थितियोंका अभी उल्लेख किया है, वैसी अच्छी और अनुकूल परिस्थितियोंमें हुआ है। मैं अपनी बात कह चुका। यदि मुझे कुछ और समझाना है तो मैं अपने जवाबमें समझाऊँगा। मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने मेरी बात इतने धैर्यके साथ सुनी। ईश्वर करे कि आप सब इस प्रस्तावको सर्वसम्मति से पास करें। ईश्वर आपको इस प्रस्तावको सफल बनानेकी, और वह भी एक सालके भीतर ही सफल बनानेकी शक्ति और योग्यता दे। (जोरसे और देरतक हर्षध्वनि।)[१]

[अंग्रेजीसे]
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३५वें अधिवेशनकी रिपोर्ट
 
  1. श्री मु० रा० जयकरने अपनी पुस्तक द स्टोरी ऑफ माई लाइफ, खण्ड १, पृष्ठ ४१४-५ में (एशिया पब्लिशिंग हाउस, १९५८) निम्नलिखित अनुच्छेदोंको गांधीजीके इस भाषणका अंश बताते हुए उद्धृत किया है: “[१९०७ की सूरत कांग्रेससे अक्तक]” लगभग १३ वर्ष गुजर चुके हैं और तबसे अनेक घटनाएँ हुई जो इसे जरूरी बल्कि अनिवार्य बना देती है कि कांग्रेसका सिद्धान्त बदला जाये। मैं यहां यह कहनेको तैयार हूँ कि उसे प्रस्तावित तरीकेके अनुसार परिवर्तित करनेसे बेहतर कोई तरीका नहीं है। मैं कहता हूँ कि यह उस नीतिका ही विकसित रूप है जो कलकत्तामें पिछले अधिवेशनमें असहयोग प्रस्ताव पास करते समय अपनाई गई थी। इस सिद्धान्त परिवर्तनका उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य है ब्रिटिश जनता और ब्रिटिश सरकारको सूचित करना कि यद्यपि फिलहाल हमारा उद्देश्य, सीधा उद्देश्य, यह नहीं है कि हम ब्रिटिश साम्राज्यसे बाहर निकल जायें, लेकिन यदि हम उसमें रहते हैं तो किसीके आदेशसे नहीं रहेंगे। इम साम्राज्य में रहेंगे तो अपने मनसे, अपनी स्वतन्त्र इच्छासे रहेंगे। “स्वराज्य” शब्दका प्रयोग जान-बूझकर किया गया है, ताकि किसी राष्ट्रमण्डलके स्थापित होनेपर यदि हम उसमें रहना चाहें तो रहें और जब चाहें उससे बाहर निकल जायें।” “मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ: रास्ते लम्बे और कष्टकर हो सकते हैं। मंजिल भी दूर हो सकती है, यद्यपि मैं आशा करता हूँ कि वह दूर नहीं है। काम कठिन हो सकता है परन्तु ३१ करोड ५० लाख लोगोंके इस राष्ट्रके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है । यदि हम अपना कर्तव्य करनेका निश्चय कर लें, अपना कर्त्तव्य मर्दानगीके साथ, निर्भय होकर और देशके हितमें निःस्वार्थ भावनासे करनेका निश्चय कर लें, तो हम अपना लक्ष्य शीघ्र पा सकेंगे।”