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९१. भाषण: कांग्रेसके सिद्धान्त सम्बन्धी प्रस्तावपर

२८ दिसम्बर, १९२०

इस प्रस्तावका अर्थ यह है कि इस राष्ट्रीय सभाका उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना है और उसे प्राप्त करनेका उपाय यही है कि हमारे साधन न्याययुक्त, शुद्ध और शान्तिपूर्ण हों। महासभाकी यह धारणा है कि स्वराज्य जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी प्राप्त किया जाये; यदि वह आज ही मिल सकता हो तो आज ही प्राप्त किया जाये।

स्वराज्य प्राप्तिके लिए क्या करना चाहिए, महासभाने इस प्रस्तावमें यह भी बताया है। प्रस्ताव में लिखा है कि वराज्य हमें तलवारके जोरसे प्राप्त नहीं करना है, स्वाधीनता हमें झूठ बोलकर अथवा सत्यके अवलम्बनको छोड़कर प्राप्त नहीं करनी है; अपितु जैसे हमारा ध्येय शुद्ध है वैसे ही हमारे साधन भी शुद्ध होने चाहिए। अतएव इस प्रस्तावका अर्थ यह है कि हम स्वराज्य प्राप्त करनेका दृढ़ निश्चय करें और उसकी प्राप्तिके निमित्त न्याय, सत्य और शान्तिके मार्गको अपनायें।

मैं अपनेको खुशकिस्मत समझता हूँ कि मुझे ऐसे महत्वपूर्ण प्रस्तावको महासभाके सम्मुख प्रस्तुत करनेका सुअवसर मिला है। मैं आपको बताता हूँ कि आजतक तो महासभाका उद्देश्य यह था कि ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत जैसे अन्य उपनिवेश उत्तरदायी औपनिवेशिक शासनका उपभोग कर रहे हैं, हमें भी इसके अन्तर्गत वैसा उत्तरदायी औपनिवेशिक शासनाधिकार प्राप्त हो जाये और वह भी कानून सम्मत तरीकेसे। यहाँ कानूनका अर्थ है ब्रिटिश साम्राज्यका कानून। “ब्रिटिश सरकार खिलाफतके प्रश्नका सन्तोषजनक समाधान न करे अथवा पंजाबपर किये गये अत्याचारोंमें न्याय प्रदान करना तो एक तरफ रहा, अपनी भूलतक स्वीकार न करे तो भी हम उस सरकारके कानूनको मानें और यदि हमें महासभामें रहना हो तो हम इस साम्राज्य को मिटानेकी बात भी नहीं कर सकते,” आजतक कांग्रेसके संविधानका यह अर्थ था। लेकिन साम्राज्य इतना घोर अन्याय करे और उसका निराकरण न करे तो भी हिन्दू और मुसलमान उसे सहन कर लें, यह बात अब सम्भव नहीं है। फलतः इस प्रस्तावके द्वारा हम निश्चय करते हैं कि हमें स्वराज्य चाहिए; स्वराज्य प्राप्त करके ही हम पंजाब और खिलाफतके अत्याचारोंके सम्बन्धमें न्याय प्राप्त कर सकेंगे।

लेकिन स्वराज्य प्राप्तिके लिए मैं पश्चिमके साधनोंका उपयोग नहीं करना चाहता। मैं जानता हूँ, हिन्दू अथवा मुसलमान यह नहीं कहते कि हम अपनी स्वतन्त्रताके लिए तलवारका सहारा कभी नहीं लेंगे। लेकिन इतना तो सब समझते हैं कि आज जो हमें चाहिए उसे हम तलवारसे प्राप्त नहीं कर सकते और इसीलिए हम तर्केमवालात अथवा असहयोगका आन्दोलन चला रहे हैं। तलवारसे हम स्वयं अपनेको, अपने धर्मको, साम्राज्यको अथवा किसीको भी नहीं बचा सकेंगे। यदि आप मेरे