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भाषण: कांग्रेसके सिद्धान्त सम्बन्धी प्रस्तावपर

कथनको स्वीकार करते हैं तो मैंने आपके सामने जो प्रस्ताव रखा है, आप उसका विरोध नहीं करेंगे।

मैं जानता हूँ कि हमारे समझदार नेताओंमें दो पक्ष हैं। उनमें से एकमें, मेरे बड़े भाई मदनमोहन मालवीय हैं। पंडितजी आज बुखार और जुकामसे पीड़ित हैं; इस वजहसे वे अपने विचार व्यक्त करने के लिए आपके सम्मुख नहीं आ सके हैं। इसलिए मैं आपको उनके कथनका आशय संक्षेपमें सुनाऊँगा। आप जानते हैं कि पंडितजी जैसे राष्ट्रसेवी बहुत नहीं हैं। उनके जैसे राष्ट्रसेवीके विचार अगर आप न भी मानें तो भी आपको उन्हें शान्तिपूर्वक और सम्मानपूर्वक सुनना चाहिए। उनका कहना है कि ब्रिटिश साम्राज्यको मिटाने की बात करना हमारी शक्ति से बाहर है। जो हिन्दुस्तान निःशस्त्र है, अपेक्षाकृत कम शक्तिसम्पन्न है, वह ऐसे जबर्दस्त साम्राज्यको किस तरह मिटा सकता है? उनके कथनानुसार हमें अपनी ताकतसे बाहरकी बातें कह-कह कर लोगोंको भरमाना नहीं चाहिए। वह मनुष्य मूर्ख है जोइस तरह लोगोंको उनकी ताकतसे बाहरके कार्य करने के लिए उकसाता है। उनके कथनके मुताबिक अगर यह काम जनताकी ताकतसे बाहर है तो मुझे उनकी सलाह मान लेनी चाहिए। लेकिन इस सम्बन्धमें मेरा मत उनसे भिन्न है। मेरी मान्यता है कि प्रत्येक स्त्री और पुरुषमें स्वराज्य प्राप्त करनेकी शक्ति है। जबतक हमारा यह विश्वास है कि इस शरीरमें आत्माका वास है तबतक हम स्वराज्यके योग्य हैं, ऐसी मेरी मान्यता है। तैंतीस करोड़ हिन्दू मुसलमान दोनों अपने-अपने धर्मोपर आरूढ़ हैं, वे खुदाका नाम लेनेवाले और ईश्वरके नामपर मृत्युका भी स्वागत करनेवाले हैं। एक गायकी हत्या पर हजार हिन्दू खून लेने-देनेके लिए तैयार हो जाते हैं। एक मुसलमान के अपमानका बदला लेनेकी खातिर अनेक मुसलमान भी इसी तरह तैयार हो जाते हैं। जबतक हिन्दुस्तान में ऐसे हिन्दू और मुसलमान विद्यमान हैं तबतक मैं यह कदापि नहीं कहूँगा कि हिन्दुस्तानके लिए स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव है; और तबतक में स्वराज्यके अपने इस आदर्शको छोड़ नहीं सकता।

इस साम्राज्यने हमपर इतने अधिक अत्याचार किये हैं कि उसके झंडेके नीचे रहना ईश्वरके प्रति द्रोह करना है। इसलिए मेरी आप सबसे नम्र प्रार्थना है कि आप इस प्रस्तावका अनुमोदन करें।

हममेंसे जिन्हें ऐसा प्रतीत होता हो कि हम अशक्त हैं, शक्ति से स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते, उन्हें तो यह ध्येय स्वीकार्य होना ही चाहिए कि हम शान्तिसे और सत्यपर आरूढ़ रह कर ही स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं। इससे हम उच्चसे उच्च आदर्शको अपने सम्मुख रख सकते हैं।

जिनको ऐसा आभास होता हो कि आगे-पीछे यह साम्राज्य शायद हमारी बात समझ जायेगा, अन्ततः उसे सुनेगा और समझेगा तथा न्याय प्रदान करेगा; हम विधान मण्डलोंमें जाकर उसे समझा सकेंगे, वे भी इस प्रस्तावसे कांग्रेसमें रह सकेंगे।

हम साम्राज्यको दण्ड देना नहीं चाहते; हम उसके साथ सारे सम्बन्ध तोड़कर ही स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं, ऐसी कोई बात भी इस प्रस्तावमें नहीं आती। यही