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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साम्राज्य अगर हमें न्याय देनेके लिए तैयार हो, हमारे अधिकार देनेके लिए तैयार हो तो हम उसके अधीन रहनेके लिए तैयार हैं। इसे मैं न्यायका पक्ष कहता हूँ, इस पक्षपर चलनेमें कोई विघ्न-बाधा नहीं है।

इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि अगर आपको यह प्रस्ताव स्वीकार हो कि हमें स्वराज्य लेना है और जिस ढंगसे इस प्रस्तावमें बताया गया है, उसी ढंगसे स्वराज्य लेना है, तो आप अपने हृदय में इसकी दृढ़ प्रतिज्ञा करें। सिर्फ प्रस्ताव पास करनेसे काम खत्म नहीं हो जाता। आप प्रतिज्ञा करेंगे तो स्वराज्य अवश्य प्राप्त करेंगे और पंजाबके अत्याचारों और खिलाफतके अन्यायका निराकरण करा सकेंगे।

आपके सम्मुख ऐसे वक्ता भी आयेंगे जो कहेंगे कि हम अपने उद्देश्यको प्राप्त करनेके लिए चाहे जैसे साधनोंका प्रयोग कर सकते हैं। इसका उत्तर में प्रसंग आनेपर दूँगा। फिलहाल तो में इतना ही कहता हूँ कि यदि हम महासभाका ध्येय निश्चित करना चाहते हैं तो उसे हमें वर्तमान परिस्थितियोंको ध्यान में रखते हुए ही निश्चित करना चाहिए। मेरा अपना धर्म तो यही है कि हिंसासे मुझे स्वराज्य मिलता हो तो मुझे वह नहीं चाहिए। हिंसासे मुझे मोक्ष भी मिले तो मुझे मंजूर नहीं। अगर हिंसासे ईश्वरभक्ति भी सम्भव हो तो मुझे वह भक्ति भी नहीं चाहिए। इस प्रस्ताव आज अहिंसा और सत्यके जो साधन बताये गये हैं वे ही आपके लिए उचित हैं। उन्हीं साधनोंसे आप अपने ऊपर किये गये अत्याचारोंका परिमार्जन करा सकेंगे।

मैं आपको ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता। आज हिन्दुस्तान में चारों ओर कितनी जागृति हुई है, यह में जानता हूँ और इसीलिए यह मानता हूँ कि मुझे आपसे कुछ ज्यादा कहने-सुननेकी जरूरत नहीं है।

अपनी बातको खत्म करने से पहले में आपके सामने आदर्श पाठकी तरह एक घटनाकी बात प्रस्तुत करना चाहता हूँ। कल बंगालके शिविरमें कुछ झगड़ा हो गया था। उसकी खबर सुनकर मुझे दुःख हुआ। स्वाधीनता कैसे प्राप्त की जा सकती है――यह बतानेके विचारसे में वहाँ गया। मैंने अपनी बात बड़े आदरसे कही। मैंने उनसे कहा कि आपमें से कौन-सा पक्ष न्यायपर है और किस पक्षने भूल की है, मैं यह नहीं कह सकता; लेकिन यदि आप पारस्परिक अनबनको दूर करना चाहते हैं, हिन्दुस्तान के लिए स्वराज्य लेना चाहते हैं, अपने हृदयोंको शुद्ध और विकाररहित करना चाहते हैं तो आप इस सारी घटनाको भूल जायें। आप अपने झगड़े यहीं समाप्त कर दें। दोनों पक्ष यह बात समझ गये। हम स्वराज्य चाहते हैं तो अगर हमारे भाईने हमें नुकसान पहुँचाया हो अथवा हमारा सिर फोड़ दिया हो तो भी हमें सरकारके पास नहीं जाना चाहिए। हम अध्यक्षके पास भी क्यों जायें? मुझे कोई लाठी लेकर मारे तो मैं उसके सामने झुक जाऊँगा, क्योंकि उसे जीतनेका यही अवसर है। अगर हमने यह न किया तो हम कुछ नहीं कर सकेंगे। यदि आप दृढ़ हैं, बहादुर हैं, स्वराज्य प्राप्त करने के लिए कृत-संकल्प हैं और सचमुच महासभाके ध्येयमें परिवर्तन कराना चाहते हैं तो आपको अपने कोधका शमन करना होगा। अन्यायकी कोई भी भावना यदि आपके हृदयको कचोटती है तो आपको अपनी इस भावनाको दबाना पड़ेगा और