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भाषण: कांग्रेसके सिद्धान्त सम्बन्धी प्रस्तावपर

सब भूल जाना पड़ेगा। अतएव बंगाली भाइयों और अन्य सब लोगोंसे, जो इस महती सभामें दृढ़ निश्चय करके शामिल हुए हैं, मैं यही माँगता हूँ कि आप देशको सुदृढ़ बनाने के अलावा किसी और वस्तुके लिए प्रयत्न न करें, आप अपने अधिकारोंकी प्राप्तिके प्रयत्नके अतिरिक्त किसी अन्य बातकी चिन्ता न करें; अपने देशके सम्मानकी रक्षा करने के अलावा किसी दूसरी बातपर ध्यान न दें। कल जितने लोगोंके हृदयोंको चोट पहुँची और जिन्हें शारीरिक आघात लगे [उन्होंने शान्ति रखी]। मैं आपमें से हर व्यक्तिको उन लोगोंका अनुकरण करनेकी सलाह देता हूँ। (हर्षध्वनि)। महासभाके विशेष अधिवेशनमें हम जिस महान युद्धके लिए मैदान में उतरे हैं उसके खतम होनेतक कदाचित् हमें खूनका समुद्र तैरना पड़े। लेकिन हमपर अथवा हममें से किसीपर खून बहानेका आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए ताकि आनेवाली पीढ़ियाँ यह कह सकें कि हमने सहनशीलता दिखाई है, हमने दूसरोंके प्राणोंकी नहीं, बल्कि अपने प्राणों की आहुति दी है। इसलिए मैं जरा भी हिचके बिना कहता हूँ कि जिनके सिर फूटे और जिनकी जानें जोखिममें पड़ीं उनके प्रति में अधिक सहानुभूति नहीं दिखाना चाहता। इसमें हमारा क्या गया? अपने देशभाइयोंके हाथों मरना तो अधिक अच्छा है। हम किसलिए और किससे प्रतिशोध लें? यदि कोई जासूस अथवा सरकारी अधिकारी मुझे मारे तो भी मैं उसके विरुद्ध सरकारसे नहीं ईश्वरसे फरियाद करूँगा। हम जबतक परस्पर पूर्ण सहयोग नहीं करते तबतक स्वाधीनता नहीं मिल सकती। बंगाली भाइयोंने दंगा किया; लेकिन वे समझ गये और तुरन्त सावधान हो गये। जो हिंसाको धर्म समझते हैं उनसे में कुछ नहीं कहना चाहता, लेकिन जो अपने को असहयोगी बताते हैं उनसे में अवश्य अधिकारपूर्वक कह सकता हूँ। उन्होंने क्रोध न करनेका वचन दिया है। मैं बंगालके प्रतिनिधि भाइयोंको इस अवसरपर बधाई देता हूँ। अगर आप सब उन लोगोंके समान ही आचरण करेंगे तो मुझे रंच-मात्र भी शंका नहीं कि आप स्वराज्य अवश्य प्राप्त कर सकेंगे। अपने मारनेवालेको क्षमा प्रदान करना कायरता नहीं है। यदि कोई मुझे मारे तो मैं उसे कायरताके कारण सहन नहीं करूँगा। मैं जानता हूँ कि सचमुच कायर तो वह है। यदि इस कारण तरस खाकर जिसने मुझपर अत्याचार किया ही ऐसे व्यक्तिको मैं माफ कर देता हूँ तो यह बहादुरीकी बात है। इस प्रस्तावको आपके सम्मुख प्रस्तुत करते समय यह पदार्थ-पाठ आपके सामने प्रस्तुत है।

इसके साथ-साथ ही में आपसे अटल श्रद्धा और निश्चयकी भी आशा करता हूँ। मैं जानता हूँ कि आपने जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी स्वराज्य प्राप्त करनेका निश्चय किया है; और आप इस स्वराज्यको विधिसम्मत, सम्मानजनक, अहिंसात्मक और शान्तिपूर्ण साधनोंसे ही प्राप्त करना चाहते हैं। शस्त्रसे हम सरकारका मुकाबिला कर सकें――यह सम्भव नहीं है; आत्मबल ऐसी चीज है जिससे हम सरकारसे जूझ सकते हैं। इस आत्मबलको दिखानेकी शक्ति किसी संन्यासी अथवा तथाकथित महात्मामें ही हो, सो बात नहीं है। आत्मबल दिखानेकी शक्ति हर स्त्री अथवा पुरुषमें है। फलतः मेरे देशबन्धु अगर इस प्रस्तावको स्वीकार करना चाहते हैं तो मैं उनसे