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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहता हूँ कि उसे वे दृढ़ निश्चयसे स्वीकार करें और समझ लें कि जैसा मैंने ऊपर बताया, यह प्रस्ताव शुभ मुहूर्त में ही स्वीकार किया गया है। भगवान करे आप इस प्रस्तावको सर्वसम्मतिसे स्वीकार करें और वह आपमें इसे एक वर्षके भीतर कार्यान्वित करनेका बल और धैर्य उत्पन्न करे।

[गुजराती से]
नवजीवन, २-१-१९२१
 

९२. भेंट: ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के प्रतिनिधिसे[१]

[२९ दिसम्बर, १९२० के पूर्व]

प्रतिनिधिके यह पूछनेपर कि विगत तीन महीनेकी अपनी गतिविधियोंसे श्री गांधीने क्या अनुभव किया, उन्होंने कहा:

इन तीन महीनोंके व्यापक अनुभवकी स्वयं मेरे मनपर तो यह छाप पड़ी हैं कि असहयोग आन्दोलन अब जम गया है, और बम्बई में श्रीमती बेसेंटकी सभामें, दिल्लीके कुछ स्थानों में, और बंगाल तथा गुजरातमें भी, हुल्लडबाजीकी जो घटनाएँ हुई, वैसी इक्की-दुक्की घटनाओंके बावजूद मैं निश्चय ही इसे एक शुद्धीकरणका आन्दोलन मानता हूँ। लोग दिन-प्रतिदिन अहिंसाकी भावना ग्रहण करते जा रहे हैं भले ही वे बराबर इसे सिद्धान्तके रूप में ही ग्रहण न करके एक अनिवार्य नीतिके रूप में ही ग्रहण करते हों। अगर जनता अहिंसाकी भावनाको पूरी तरह अपनाले तो मैं उससे बड़े विस्मयकारी परिणामोंकी अपेक्षा रखता हूँ――कहूँ तो यहाँतक कि सर जगदीशचन्द्र बसुकी खोजोंसे भी अधिक विस्मयकारी परिणामोंकी। जिस क्षण सरकारको पूरी तरह यह विश्वास हो जायेगा कि हम हिंसासे काम नहीं लेंगे, उसी क्षण वह अपना रवैया बदल देगी। वह जानबूझकर और इच्छापूर्वक तो यह विश्वास नहीं करेगी, लेकिन अगर उसे विश्वास हो जाये तो वह अपना रवैया बदलेगी अवश्य।

[भेंटकर्ता:] रवैया बदलेगी――यानी किस दिशामें?

[गांधीजी:] निश्चय ही उस दिशामें जिस दिशामें हम चाहेंगे यानी कि यह राष्ट्र जो-कुछ कहेगा सरकारको उसका खयाल रखना पड़ेगा।

कृपया जरा और विस्तारसे समझायें।

मेरा मतलब यह है कि लोग अपने निश्चित संकल्प और आत्मबलिदानके बल पर खिलाफत और पंजाबके सम्बन्धोंमें किये गये अन्यायका परिशोधन करा सकेंगे और अपनी पसन्दका स्वराज्य भी हासिल करेंगे।

 
  1. इस भेंटका विवरण २९-१२-१९२० के यंग इंडिया, और ५-१-१९२१ की अमृत बाजार पत्रिका में भी छपा था।