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भेंट: ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के प्रतिनिधिसे

लेकिन स्वराज्यसे आपका क्या मतलब है और उसमें सरकार कहाँ आती है――वह सरकार, जिसके बारेमें आपने कहा कि अनजाने ही वह अपना रवैया बदलेगी?

मेरे स्वराज्यका मतलब है, अभी कुछ समयके लिए भारतमें आधुनिक अर्थोंमें संसदीय सरकारकी स्थापना; वह सरकार हम ब्रिटेनवालोंके सौजन्यसे भी प्राप्त कर सकते हैं और जरूरत हुई तो उनके बिना भी।

“उनके बिना” से आपका क्या मतलब है?

इस आन्दोलनका उद्देश्य वर्तमान सरकारको उस स्वार्थ और लालचसे मुक्त कराना है, जिसकी प्रेरणा-शक्ति उसके हर कामके पीछे होती है। अब यही मान लीजिए कि हम उससे अपने सारे सम्बन्ध तोड़कर उसके लिए अपने लोभ-लालचको तुष्ट करना असम्भव बना दें। उस हालत में वह भारतमें नहीं रहना चाहेगी, जैसा कि सोमालीलैंड में हुआ। जब सरकारने देखा कि वहाँ शासन करते रहने में तो कोई फायदा ही है, उसने तुरन्त उस देशको छोड़ दिया।

लेकिन व्यवहारमें यह योजना किस तरह काम करेगी?

मैंने आपसे जो कुछ कहा है, वह कभी बहुत आगे जाकर हो तो हो। अभी तो मैं अपेक्षा यही रखता हूँ कि हमें उनके बिना यह नहीं करना होगा। जहाँतक मैं अंग्रेज लोगोंको समझता हूँ, उससे तो मुझे यही लगता है कि वे अवश्यम्भावीको सर झुका कर स्वीकार कर लेंगे। जब जनमत सचमुच एक प्रभावकारी रूप धारण कर लेगा तो वे इसके बलको पहचान लेंगे। और तब, किन्तु केवल तभी, वे उस घोर अन्यायको समझेंगे जो साम्राज्यके मन्त्रियों और उनके भारत-स्थित प्रतिनिधियोंने उनके नामपर किया है। उस समय वे भारतीय जनताकी इच्छाके अनुसार दोनों अन्यायोंका परिशोधन करेंगे, और भारतकी जनता अपने चुने हुए नेताओंके द्वारा जिस ढंगके संविधानकी माँग करेगी, अंग्रेज लोग ठीक उसी ढंगका संविधान भी उसे देंगे।

मान लीजिए कि ब्रिटिश सरकार यह मानकर कि भारतसे अब कोई लाभ नहीं हो रहा है, इस देशको छोड़कर चली जाये, तो उस हालतमें भारतकी स्थिति क्या होगी?

यह आसानीसे समझा जा सकता है कि उस समयतक भारत या तो एक विशिष्ट आध्यात्मिक ऊँचाईपर पहुँच चुका होगा या हिंसाका विरोध हिंसासे करनेकी क्षमता प्राप्त कर चुका होगा। उस हालत में वह एक बहुत जबरदस्त संगठन-क्षमताका विकास कर चुका होगा और इसलिए समयकी माँग पूरी करने के लिए हर तरहसे तैयार होगा।

तो आपका मतलब यह है कि अगर ऐसी स्थिति आई कि ब्रिटेन इसे छोड़कर चला जाये तो जिस क्षण वह इसे छोड़कर जायेगा उस क्षणतक भारत हर तरहसे तैयार और समर्थ होगा और उसके लिए परिस्थितियाँ इस दृष्टिसे अनुकूल रहेंगी कि वह एक चलते हुए संस्थानकी तरह यहाँका प्रशासन संभाल सके और उसका संचालन राष्ट्रके कल्याणके लिए कर सके?

पिछले कुछ महीनों में मैंने जो अनुभव प्राप्त किये उनकी बदौलत मेरा मन इस आशासे भर गया है कि मैं जिस एक सालके भीतर भारतके लिए स्वराज्य