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‘ब्रिटिश शासन एक बुराई’?

लेकिन ‘इंटरप्रेटर’ का यह पूछना ज्यादा विषय-संगत है कि:

क्या श्री गांधी बिना किसी दुविधा-संकोचके ऐसा मानते हैं कि भारतमें ब्रिटिश शासन सर्वथा बुरा है; और क्या भारतके लोगोंको ऐसी शिक्षा देनी है कि वे भी उसे ऐसा ही मानें? वे अवश्य ही ब्रिटिश शासनको इतना अधिक खराब मानते हैं कि उनकी दृष्टिमें उसके अन्यायोंका पलड़ा उससे होनेवाले लाभोंसे कहीं भारी है; क्योंकि ऐसा होनेपर ही अपनी अन्तरात्मा या ईसा मसीहके सामने असहयोगका औचित्य सिद्ध किया जा सकता है।”

मैं तो इसके उत्तरमें पूरी शक्तिसे “हाँ” ही कहूँगा। जबतक में मानता था कि ब्रिटिश साम्राज्य जो-कुछ करता है, वह कुल मिलाकर अच्छा ही है, तबतक में उसकी गलतियोंको क्षणिक भूलें मानता रहा और उनके बावजूद उससे चिपका रहा। मुझे अपने ऐसा करते रहनेका कोई खेद भी नहीं है। परन्तु अब जब कि मेरी आँखें खुल चुकी हैं, इस साम्राज्यसे, जबतक वह अपनी दूषित प्रवृत्ति नहीं छोड़ देता, अपना सम्बन्ध बनाये रखना पाप है। यह बात में बहुत दुःखके साथ लिख रहा हूँ और यदि मुझे मालूम हो जाये कि मैं गलतीपर हूँ, या मेरा वर्तमान रुख प्रतिक्रियात्मक है, तो मुझे खुशी होगी। इस देशको चूसकर यह साम्राज्य लगातार अपना घर भर रहा है, इसने पंजाबके पौरुषका अपहरण किया है और मुसलमानोंकी भावनाको धोखा दिया है। इन तीनों चीजोंको में भारतकी तीन-तरफी लूट मानता हूँ। ब्रिटिश साम्राज्यके शान्ति और व्यवस्थाके वरदानोंको में अभिशाप समझता हूँ। यदि हमपर शस्त्र के बलसे शान्ति थोपनेवाला ब्रिटिश शासन भारतमें न होता तो बजाय इसके कि हम पूरी तरहसे खुदको लाचार महसूस करते, जैसा कि आज कर रहे हैं, हम कमसे कम अन्य राष्ट्रोंकी तरह बहादुर स्त्री-पुरुष तो बने रहते। किसी भी आत्मसम्मानी राष्ट्रको अपनी अवमानना और पतनकी कीमतके बदलेमें सड़कों और रेलोंके “वरदान” स्वीकार नहीं होंगे। शिक्षाका “वरदान" तो स्वातन्त्र्य-लाभकी प्रगतिके मार्गमें सबसे बड़ी रुकावट साबित हो रहा है।

शुद्धीकरणका आन्दोलन

सच तो यह है कि अहिंसा के कारण असहयोग एक धार्मिक और शुद्धीकरणका आन्दोलन बन गया है। यह राष्ट्रको प्रतिदिन शक्ति प्रदान कर रहा है, उसे उसकी दुर्बलताएँ दिखाता है और उन्हें दूर करनेका उपाय सुझाता है। यह आत्मनिर्भरताकाआन्दोलन है। यह विचारोंमें कान्ति लाने और चिन्तनकी प्रेरणा देनेकी दृष्टि से सबसे जबरदस्त शक्ति है। यह स्वयं आगे बढ़कर कष्ट झेलनेका आन्दोलन है, और इसलिए ज्यादती या अधीरतापर स्वतः नियन्त्रण रखता है। राष्ट्रकी कष्ट सहनकी क्षमता स्वतन्त्रताकी दिशामें उसकी प्रगतिका नियमन करती है। इसके बलपर हर प्रकारसे बुराईसे अलग रहा जा सकता है और इस तरह यह बुराईकी शक्तियोंको बिलकुल पंगु बना देती है।