पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/२०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

फीजीको पुकार

अन्यत्र प्रकाशित एक अन्य पत्रसे[१] भी आन्दोलनको जोरदार समर्थन मिलता है। मेरे सम्माननीय पत्र-लेखकने उन कारणोंका विश्लेषण किया है जिनके कारण हमारे देशभाई इतनी बड़ी संख्या में वापस लौटे, और लौट रहे हैं। फीजीमें औरतोंपर भी मुकदमे चलाये गये, उन्हें कारावास दिया गया। निःसन्देह कोई कारण नहीं कि स्त्री होने के कारण कोई व्यक्ति प्रमाणित अपराधके लिए दण्डसे बरी हो जाये। परन्तु फीजीसे प्राप्त सभी ब्यौरोंसे साबित होता है कि फीजीमें जो मुकदमे चलाये गये वे बहुत-कुछ पंजाबके मुकदमों-जैसे ही थे। आतंक फैलानेका यह तरीका थोड़ी-सी स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रही एक जातिको कुचलनेके लिए ही अपनाया गया है। मुझे लगता है कि फीजीको कांग्रेसका एक शिष्टमण्डल भेजकर हम अपने पीड़ित देशभाइयोंको कोई भी राहत नहीं दे सकेंगे। मैं फीजी सरकारपर कतई कोई विश्वास नहीं करता। वह जाँच करनेके लिए शिष्टमण्डलको कोई सुविधा नहीं देगी। शायद भारत सरकार शिष्टमण्डलकी भारतसे रवानगी ही रोक दे। मेरे लिए फीजीका संकट असहयोग आन्दोलनको तीव्र करनेका अतिरिक्त कारण प्रस्तुत करता है। इस बीच हमें चाहिए कि जो लोग भारत वापस लौटें, उनकी देख-भालके लिए जितना भी कर सकें, हम करें।[२]ऐसा न हो कि हम वापस आनेवाले भारतीयोंको उनके भाग्यके भरोसे छोड़ दें, और वे निराश होकर फिर फीजी वापस चले जानेकी सोचने लगें। इसलिए मुझे खुशी है कि जो लोग वापस आये हैं, श्री अ० वि० ठक्कर[३] और शान्तिनिकेतन के श्री बनारसीदास[४] उनकी देखभाल कर रहे हैं। श्री ठक्करने अभी-अभी पुरीमें[५] अपना कठिन काम समाप्त किया है और श्री बनारसीदास श्री सी० एफ० एन्ड्रयूजको उनके मानव-हितके कार्यों में सहायता दे रहे हैं।

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, २९-१२-१९२०
 
  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। जनवरी १९२० में फीजी सरकारने भारतीय मजदूरोंके गिरमिट रद कर दिये, और उनमें से जो भारत वापस जाना चाहते थे उन्हें जल्दी स्वदेश वापस भेजनेका प्रबन्ध किया गया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग फीजीसे लौंटे। बहुतेरे तो भारत में एक तरहसे तबाह हालतमें लौटे।
  3. अमृतलाल विठ्ठलदास ठक्कर (१८६९-१९५१); एक गुजराती इंजीनियर; सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीके आजीवन सदस्य, जीवन-भर सेवाका और हरिजन-कल्याणका काम करते रहे।
  4. बनारसीदास चतुर्वेदी, हिन्दी लेखक और पत्रकार; १९२० के जुलाई मासमें चीफ्स कालेज, इन्दौरसे इस्तीफा दिया और बादमें शान्तिनिकेतन में एण्ड्यूजके साथ काम करने लगे; चार्ल्स फ्रीअर एण्ड्यूज नामक जीवनीके सह-लेखक; १९५२ से १९६४ तक राज्य सभाके मनोनीत सदस्य।
  5. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ २९९-३००, ३१६-१७।