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९४. मेरे लिए एक ही डग आगे देखना काफी है

श्री स्टोक्स एक ऐसे ईसाई हैं जो परमात्माके दिखाये हुए पथपर चलना चाहते हैं। उन्होंने भारतको अपना घर बना लिया है। भारतकी मैदानी आबादीसे दूर, कोटागिरिकी पहाड़ियों में उन्होंने अपना निवास-स्थान बनाया है और वहाँ वे पहाड़ी जनताकी सेवा कर रहे हैं। वहींसे वे असहयोग आन्दोलनकी गतिविधि देख रहे हैं। कलकत्ताके ‘सर्वेन्ट’ नामक पत्र तथा अन्य समाचारपत्रोंमें उन्होंने असहयोगपर तीन लेख लिखे हैं। बंगालका दौरा करते समय मुझे इन लेखोंको पढ़नेका सौभाग्य मिला। श्री स्टोक्स असहयोगको सही मानते हैं, किन्तु उसकी पूर्ण सफलता, अर्थात् अंग्रेजोके भारत छोड़ देनेके सम्भावित परिणामोंसे वे डरते हैं। कल्पनामें उनकी आँखोंके सामने भारतकी ऐसी तस्वीर उभर आती है जिसमें उत्तर-पश्चिमसे वह अफगानोंसे आक्रान्त है और उधर पहाड़ियोंकी ओरसे आकर उसे गोरखे लूट रहे हैं। मैं तो कार्डिनल न्यूमैनके शब्दोंमें यही कहूँगा कि “मैं सुदूर भविष्यकी चिन्ता करनेको नहीं कहता; मेरे लिए तो एक ही कदम आगे देखना काफी है।” यह आन्दोलन मुख्यतः धार्मिक है। ईश्वरसे डरनेवाले हर व्यक्तिका कर्त्तव्य है कि परिणामकी चिन्ता किये बिना वह हर बुराईसे अपनेको अलग रखे। उसे यह विश्वास होना चाहिए कि अच्छे कामका परिणाम अच्छा ही होगा; और मेरी रायमें ‘गीता’ के निष्काम कर्मका यही सिद्धान्त है। ईश्वरकी ओरसे उसे भविष्यकी चिन्ता करनेकी छूट नहीं है। वह सत्यका अनुसरण करता है, चाहे इसके लिए उसे अपने प्राणोंको ही संकटमें क्यों न डालना पड़े। वह जानता है कि धर्म-पथपर चलते हुए मरना अधर्मका जीवन जीनसे बेहतर है। इसलिए जिस किसीको यह विश्वास हो कि यह सरकार अधर्मके काम करती है, उसके लिए सरकारसे अपने सारे सम्बन्ध तोड़ लेनेके सिवाय दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

फिर भी, अंग्रेजोंके भारतसे एकदम चले जानेपर ज्यादासे-ज्यादा बुरा परिणाम क्या हो सकता है, उसपर भी हम विचार कर लें। गोरख और पठान हमपर आक्रमण करेंगे तो उससे क्या होगा? निश्चय ही वर्तमान सरकार बराबर हमारे साथ जो नैतिक और शारीरिक हिंसा करती रहती है, उसकी अपेक्षा हम उनकी हिंसा से अधिक अच्छी तरह निपट सकेंगे। श्री स्टोक्स, लगता है, शारीरिक शक्ति के प्रयोगके खयालको त्याग नहीं पाये हैं। निःसन्देह एकताके सूत्र में बँधे भारतके राजपूत, सिख और मुसलमान वीरोंपर भरोसा किया जा सकता है कि वे उन आक्रमणकारियोंका――चाहे वे किसी एक तरफसे आयें या हर तरफसे आयें ――मुकाबला कर सकेंगे। लेकिन जो सबसे बुरी स्थिति हो सकती है, उसीकी कल्पना कीजिए: जापान बंगालकी ओरसे हमला करता है, गोरख पहाड़ियोंकी ओरसे और पठान उत्तर-पश्चिमकी ओरसे धावा बोल देते हैं। उस हालत में यदि हम उन्हें शुरूमं ही बाहर न खदेड़ सकें, तो हम उनसे सुलह कर लेंगे और अवसर मिलते ही उन्हें बाहर भगा देंगे। जो राज्य जाने-माने

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