ऐसा मानते थे। उन्होंने अपनी इस मान्यता के लिए अन्तमें पश्चात्ताप किया। उनमें से नेटालके एक स्वर्गीय श्री एस्कम्ब थे और दूसरे दक्षिण आफ्रिकाके वर्तमान प्रधान मन्त्री जनरल स्मट्स हैं।
‘प्रेमल ज्योति’के[१]भजनकी झंकार आज भी मेरे कानोंमें गूँजती है। आज भी उसका आदेश मेरा लक्ष्य है। आज भी में प्रतिक्षण ईश्वरीय प्रेरणाकी याचना कर रहा हूँ।
तथापि पाश्चात्य संस्कृतिको भूल जानेकी सलाह मैंने उस समय भी दी थी। इस संस्कृतिके अनुकरण में हिन्दुस्तानका नाश मुझे सन् १९०८में स्पष्ट रूपसे दिखाई दिया। अपनी इस मान्यताको सबसे पहले मैंने एक अंग्रेज रईसके[२] सामने व्यक्त किया और जब मैं इंग्लैंडसे दक्षिण आफ्रिका वापस आ रहा था तब उसी वर्ष (१९०८में)[३] ‘इंडियन ओपिनियन’ में उसे प्रकाशित किया। अन्तमें वे लेख ‘हिन्द-स्वराज्य’[४]नामक पुस्तक के रूप में संग्रहीत हुए। मैं उसे अथवा इसके अनुवादको श्री नरसिंहरावसे पढ़ जानेकी प्रार्थना करना चाहता हूँ। उससे उन्हें मेरी आधुनिक प्रवृत्तिके सम्बन्ध में अधिक जानकारी मिल जायेगी।
लेकिन पाश्चात्य संस्कृतिके त्यागका अर्थ सब अंग्रेजी वस्तुओंका त्याग अथवा अंग्रेज जनताके प्रति द्वेषभाव मैंने कभी नहीं माना और आज भी नहीं मानता। मैं ‘बाइबिल’का पुजारी हूँ। यीशु द्वारा पर्वतपर दिया गया उपदेश मेरे लिए आज भी मंगलमय है। उसके मधुर वाक्य आज भी मेरे हृदयके सन्तापको शीतल कर सकते हैं। रस्किन और कार्लाइलके कितने ही लेखोंको मैं आज भी प्रेमभावसे पढ़ता हूँ। अनेक अंग्रेजी भजनोंके सुर और उनकी कड़ियाँ आज भी मुझे अमृत-तुल्य लगती हैं। ऐसा होनेपर भी पाश्चात्य पद्धतिके त्यागको मैं इष्ट मानता हूँ, धर्म समझता हूँ।
पाश्चात्य संस्कृति अर्थात् पश्चिममें मान्य आजके आदर्श और उनपर प्रतिष्ठित पाश्चात्य प्रवृत्तियाँ। पशुबलको प्रधानपद, धनको भगवानका ओहदा, ऐहिक सुखकी प्राप्तिमें समयका अपव्यय, अनेक प्रकारके दुनियावी भोगोंको पानेके लिए अद्भुत साहस, यान्त्रिक शक्तिको बढ़ानेके निमित्त मानसिक शक्तियोंका असीमित प्रयोग, संहारक अस्त्रोंको खोज निकालने में करोड़ों रुपयोंका खर्च और यूरोपसे बाहरके राष्ट्रोंकी जनताको हीन समझना धर्म । इस संस्कृतिको मैं सर्वथा त्याज्य मानता हूँ।
यह सब होने के बावजूद में अंग्रेजी राज्यके आंचलको पकड़े हुए था क्योंकि मैंने भ्रान्तिवश मान लिया था कि उसमें उपर्युक्त संस्कृतिको खण्डित करनेका साहस
- ↑ न्यूमैनको कविता, “लोड काइन्डली लाइट” का नरसिंहराव दिवेटिया द्वारा किया गया गुजराती अनुवाद।
- ↑ सम्भवत: लॉर्ड ऍस्टहिल; जिनसे गांधीजीकी मुलाकात १९०९ में इंग्लैंडमें हुई थी।
- ↑ यह वस्तुत: १९०९ होना चाहिए। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके शिष्टमण्डलके एक प्रतिनिधिके रूपमें गांधीजी इस वर्ष मध्य जुलाईसे लेकर १३ नवम्बर तक इंग्लैंडमें थे।
- ↑ जनवरी १९१० में; हिन्द-स्वराज्यका एक अंग्रेजी अनुवाद, जो स्वयं गांधीजीने किया था, इसी वर्ष मार्च महीनेमें प्रकाशित हुआ था। देखिए खण्ड १०, १४ ६-६९।