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विद्वान नरसिंहरावके प्रति

लेकिन श्री नरसिंहरावको मुझमें कुछ अन्य दोष भी नजर आते हैं जो गुरुओंमें विशेष रूपसे होते हैं। मैं चरणस्पर्शके सामने सत्याग्रह नहीं करता――उसकी निन्दा करनेके बावजूद――लोगोंको चरणस्पर्श करने देता हूँ, यह क्या है? मैं विनयपूर्वक इन भाईको बताना चाहता हूँ कि चरण-स्पर्श सत्याग्रहका विषय नहीं है। इसके मूलमें कोई दोष अथवा पाप नहीं है जिसके विरुद्ध सत्याग्रह किया जाये। और फिर असंख्य सीधे-सादे स्नेहशील किसानोंको, जिन्हें हमेशासे चरणस्पर्श करनेकी आदत पड़ गई है, एकाएक कौन समझा सकता है? मैं श्री नरसिंहरावको विश्वास दिलाता हूँ कि चरण-स्पर्श अथवा जयघोषसे मैं बहुत घबराता हूँ। भाई शौकत अली मुझे चरणस्पर्श रूपी प्रहारोंसे बचाने की हमेशा बहुत कोशिश करते हैं, बहुत सारे स्वयंसेवकोंकी भी यही कोशिश रहती है लेकिन इससे में पूरी तरहसे छुटकारा नहीं पा सका हूँ। इसके विरुद्ध उपवास रखकर अथवा मौनव्रत द्वारा सत्याग्रह करनेकी मेरी हिम्मत नहीं, इच्छा नहीं। जयघोषसे मुझे इतनी अकुलाहट होती है कि मैं कई बार सचमुच अपने कानों में रुई देता हूँ। पूजासे भ्रमित न होने और तिरस्कारसे अपने कर्त्तव्यका त्याग न करनेका मैं नरसिंहरावको विश्वास दिलाता हूँ।

श्री नरसिंहरावने मुझे बांदरा प्वाइन्टपर[१]आनेका आमन्त्रण दिया है। मैं वहाँ केवल साधु पुरुष दयाराम गिदुमलसे[२]मिलनेके लिए जाना चाहता था। उनके विषय में मैंने हैदराबाद में उनके परिवारके लोगोंसे कुछ बातें सुनी थी। श्री नरसिंहरावने उन्हें अपने घरमें परम सम्मानित अतिथिके रूपमें रखकर बहादुरी दिखाई है, उसके लिए वहाँ जाकर उन्हें बधाई देनेका भी मेरा उद्देश्य था। अत्यधिक व्यस्त होने के कारण मैं अपने इस उद्देश्यको पूरा न कर सका।

बांदरा प्वाइन्टपर जाकर मुझे आश्वासन मिलेगा अथवा वहाँ मुझे प्रे‘मल ज्योति’- के विशेष रूप से दर्शन होंगे, ऐसी मुझे आशा नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व बांदरामें जाकर रहनेका अवसर मुझे मिला था लेकिन मैंने उसे जानबूझकर त्याग दिया था। बम्बईका कसाईघर बांदरामें है। मैं जब-जब बांदरासे होकर निकलता हूँ तब-तब वह कसाई-घर मेरे हृदयको बेधता है। बांदरामें चाहे कितने ही सुन्दर दृश्य क्यों न हों, वे सब मुझे निर्दोष पशुओंके रक्तसे सने हुए जान पड़ते हैं और इसीसे वहाँ जाते हुए मेरी आत्मा दुःखी होती है। ऐसा दूसरा स्थान कलकत्ता है, वहाँ रहना भी मुझे विषम लगता है। वहाँ हिन्दूधर्म के नामपर असंख्य बकरोंका कत्ल होता है। वह मुझसे सहन नहीं किया जाता। तथापि मैं बांदरा जानेका प्रयत्न अवश्य करूँगा। लेकिन उद्देश्य तो अभी पहला ही रहेगा। और ‘प्रेमल ज्योति’ की झाँकी तो मुझे जब वह निर्मल संयमसे हृदय-मन्दिरमें विभूषित होती है, मिल जाती है और परम शान्ति प्रदान करती है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-१२-१९२०
  1. बम्बईमें; नरसिंहराव इस समय वहाँ रहते थे।
  2. १८५७-१९३९; समाज-सुधारक, सेवासदन, बम्बईके संस्थापक।