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९७. भाषण: विदेशों में प्रचारपर[१]

२९ दिसम्बर, १९२०

इस समाचारपत्रका मूल्य उसकी उपयोगिताके मुकाबिलेमें बहुत ज्यादा है। इसका प्रभाव अंग्रेज लोगोंकी सम्मतिपर लगभग नगण्य है। अंग्रेज लोगोंकी भारततक पहुँचाई जाने योग्य रायके वाहनकी तरह भी यह समाचारपत्र कोई जागरूक साधन नहीं है। अब चूँकि हमने असहयोग छेड़ ही दिया है और हम स्वावलम्बी बननेका संकल्प कर चुके हैं इसलिए हमारा ब्रिटिश कमेटीको भंग कर देना और ‘इंडिया’ का प्रकाशन बन्द कर देना संगत होगा। अपना समस्त ध्यान और अपने सर्वोत्तम कार्यकर्ताओंको भारतके कल्याणार्थ केन्द्रीभूत करना मैं कहीं पसन्द करूँगा; फसल तो बहुत अच्छी है लेकिन काटनेवाले कम हैं। हम अपना एक भी कार्यकर्ता विदेशोंमें प्रचार करनेके लिए नहीं दे सकते।

अगर हम ब्रिटिश कमेटीको कायम रखते हैं तो हमें अपन अनुष्ठान के सम्बन्धमें सहायता मिलनेकी अपेक्षा हानि होनेकी अधिक सम्भावना है। यदि हम यहाँ थोड़ा बहुत काम भी करते रहें तो हमें प्रचारकी जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं चाहता हूँ कि अन्य देश मेरी बात समझनेका प्रयास करें। वहाँके लोग कामकी बातको ही――केवल कामको――समझते हैं। जब कभी हम किसी एक भी ठोस तथ्यको प्रसारित कर पाये हैं, हमारे विरोधियोंने तरह-तरहकी हिकमतोंसे उसका खण्डन किया है। आप ब्रिटिश लोगोंको उनकी नेकनीयतीपर छोड़ दीजिए, तब एजेंसीकी मार्फत समाचारोंको न भेज कर आप जो त्याग करेंगे उसकी भावनाको समझ जायेंगे। कामको देखते हुए हमारी संख्या बहुत ही कम है। हमें अपने सभी साधनोंको काम में लाना चाहिए। अच्छा हो यदि हम ४५,०००) रुपया यहाँ खर्च करें।

[अंग्रेजीसे]
महात्मा, खण्ड २; तथा महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से।
सौजन्य: नारायण देसाई
 
  1. यह भाषण नागपुर कांग्रेस अधिवेशनमें इस आशयका प्रस्ताव पास करते समय दिया गया था कि ब्रिटिश कांग्रेस कमेटीके तथा उसके पत्र, इंडियाको जो पिछले ३० वर्षीसे लन्दनसे प्रकाशित होता था, बन्द कर दिया जाये। द्वितीय अनुच्छेद महादेव देसाई (२९ दिसम्बर, १९२०) को हस्तलिखित डायरी में इस भाषणको एक हिस्सेके रूप में दिया गया है; और महात्मा, खण्ड २ से लिया गया प्रथम अनुच्छेद भी, जो बिना तारीखका है, उसी भाषणका अंश प्रतीत होता है।