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९८. असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावका मसविदा[१]

[३० दिसम्बर १९२० के पूर्व]

यह कांग्रेस उस प्रस्तावपर, जिसे पिछले विशेष अधिवेशनमें [२]पारित किया गया था और जिसमें सरकारके प्रति प्रगतिशील अहिंसात्मक असहयोगका इसलिए परामर्श दिया गया था कि खिलाफत तथा पंजाबकी गलतियाँ ठीक की जा सकें और स्वराज्य प्राप्त किया जा सके, फिरसे जोर देते हुए यह विचार व्यक्त करती है कि अब समय आ गया है कि “क्रमश:” शब्दको उन अनुच्छेदोंसे निकाल दिया जाये जिनमें कहा गया था कि सम्बद्ध अथवा सहायता पानेवाले स्कूलों तथा कालेजोंमें पढ़नेवाले लड़कोंको पढ़ने न भजा जाये तथा वकील लोग ब्रिटिश कचहरियोंमें वकालत करना बन्द कर दें। इसलिए वह प्रस्ताव रखती है कि “क्रमश:” शब्द हटा दिया जाये।

राष्ट्रन अबतक असहयोगके कार्यक्रमको चलाने और विशेष तौरसे वोटरों द्वारा कौंसिल निर्वाचनोंका[३]बहिष्कार किये जाने में जो प्रगति की है उसपर यह कांग्रेस उसे बधाई देती है और विश्वास प्रकट करती है कि जो लोग मतदाताओंके निश्चित मतकी अवहेलना करके चुनावमें खड़े होकर कौंसिलोंमें चले गये हैं वे वहाँसे इस्तीफा दे देंगे। इस कांग्रेसके विचारमें कौंसिलके सदस्योंका अपनी सीटपर जमे रहना गणतन्त्रके सिद्धान्तका प्रत्यक्ष अनादर होगा।

यदि विभिन्न चुनाव क्षेत्रोंके वोटरों द्वारा घोषित उनकी इच्छाके बावजूद तथाकथित प्रतिनिधि अपनी सीटोंपर जमे रहते हैं तो कांग्रेसका ऐसा मत है कि वोटरोंको चाहिए कि वे दृढ़ निश्चय कर लें कि उन प्रतिनिधियोंके पास किसी प्रकारकी कोई राजनैतिक सेवा लेने के लिए न जायेंगे और यदि प्रतिनिधि भी उनकी ऐसी कोई सेवा करेंगे तो वे उसे स्वीकार नहीं करेंगे।

यह कांग्रेस उस शिक्षाके तुरन्त रोक दिये जानेपर सबसे अधिक जोर देती है जिसे देशके युवक ऐसी सरकारके तत्त्वावधान अथवा प्रभावमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूपमें पा रहे हैं, जिसने सत्याग्रहके वर्ष के[४]अन्तर्गत भारतके मुसलमानोंकी पवित्र भावनाओंकी पूर्ण अवहेलना की है और जिसने पंजाब शासन-विभाग के निरंकुश अत्याचारोंके कारण समस्त भारतमें उत्पन्न हुई उद्विग्नताकी ओरसे कान में तेल डाल लिया है और इस कारण जिसपर राष्ट्रका विश्वास नहीं रहा है। वह अभिभावकोंको सरकारी स्कूलों तथा

  1. यह प्रस्ताव कांग्रेसके नागपुर अधिवेशनमें ३० दिसम्बर, १९२० को पास हुआ था और चित्तरंजन दास द्वारा पेश किया गया था। गांधीजी द्वारा लिखित बिना हस्ताक्षरके इस मसविदेपर अंकित है “केवल निजी वितरण और परामर्शके लिए”। पारित प्रस्तावके पाठके लिए देखिए परिशिष्ट १।
  2. सितम्बर १९२० में कलकत्ते में हुआ।
  3. नवम्बर १९२० में।
  4. १९१९।