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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कालेजोंसे अपने बच्चे हटा लेने तथा १६ या उससे अधिक आयुके बच्चोंको ऐसे स्कूलों तथा कालेजोंसे अलग हो जानेकी सलाह देती है।

देशके नवयुवकोंकी शिक्षा स्वतन्त्र और स्वच्छ वातावरण में जारी रखनके लिए यह कांग्रेस सहायता प्रदत्त अथवा सम्बद्ध संस्थाओंके मालिकों, ट्रस्टियों, शिक्षाविदों, संचालकों और शिक्षकोंको सलाह देती है कि वे सरकारसे सहायता लेना बन्द कर दें और अपने-अपने स्कूलोंकी सम्बद्धता त्याग दें तथा उन्हें सरकारी नियन्त्रणसे पूरी तरह स्वतन्त्र कर लें। वह देशके मालदार पुरुषों तथा शिक्षा विशेषज्ञोंसे यह अनुरोध भी करती है कि राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, नये स्कूल तथा कालेजोंको खोलने की व्यवस्था की जाये ताकि प्रत्येक बच्चेको राष्ट्रकी आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त शिक्षा प्राप्त हो सके।

यह कांग्रेस वकीलोंसे अपील करती है कि देशमें जो नवीन भावना जागृत हो गई है वे उसे पहचाने और अपनी वकालत छोड़कर अपना ध्यान केवल मुकदमे लड़ने-वालोंसे अदालतोंके बहिष्कार और झगड़ोंको निजी पंचायतों द्वारा तय करवाने की ओर लगायें। यह कांग्रेस धनाढ्य व्यक्तियोंसे अपील करती है कि वे जरूरतमन्द वकीलोंकी धनसे सहायता करके उनका मार्ग सुगम बनायें।

यह कांग्रेस पुलिस, फौज तथा जनसाधारणके बीच नित्य मित्रताको बढ़ते हुए देख रही है और आशा करती है कि जो लोग पुलिस अथवा सेनामें काम करते हैं वे जनताके कष्टोंको अपना कष्ट समझ कर अपने ऊपर लगाये गये इस लांछनको मिटा देंगे कि वे सिद्धान्तहीन भाड़के टट्टू हैं और जनताकी भावनाओंके प्रति कोई आदरभाव नहीं रखते।

यह कांग्रेस सरकारी नौकरी करनेवाले सभी लोगोंसे अपील करती है कि वे वफादारीके साथ नौकरीकी शर्तोको निभाते हुए आत्म-शुद्धिके लिए की गई राष्ट्रकी पुकारका जवाब दें और लोगोंके साथ अत्यन्त दयालुता और ईमानदारीका व्यवहार करते हुए राष्ट्रीय कार्य में अन्य रूपसे सहायक हों और निडर होकर खुलेआम सभी सार्वजनिक सभाओं में जायें; किन्तु कोई सक्रिय भाग न लें।

यह कांग्रेस देशके पूंजीपतियों, व्यापारियों, व्यवसायियों और दुकानदारोंसे कहती है कि वे अपने-अपने-धन्धोंमें देशभक्तिकी भावनाका संचार करके राष्ट्रीय कार्य में हाथ बँटायें और हाथ कताई और हाथ बुनाईको प्रोत्साहन देकर देशकी आवश्यकताके अनुसार कपड़ा तैयार करनेकी गति बढ़ा कर विलायती मालके बहिष्कारका आन्दोलन चलाने में सहायक बनें।

यह कांग्रेस असहयोगके प्रस्ताव में आये हुए अहिंसा सम्बन्धी भागपर विशेष जोर देना चाहती है तथा राष्ट्रका ध्यान इसकी ओर खींचना चाहती है कि अहिंसा वाणी और कर्मसे परस्पर हमारे बीच उतनी ही आवश्यक है जितनी वह राष्ट्र और सरकारके बीच आवश्यक है। इस कांग्रेसका मत है कि हिंसाकी प्रवृत्ति न केवल वास्तविक लोकतन्त्रकी आत्माके स्वतन्त्र विकासके विपरीत जाती है बल्कि वह वास्तव में आवश्यकता हुई तो कर बन्दीतक ले जानेवाली असहयोगकी तीन मंजिलोंको कार्यान्वित करने में बाधा पहुँचाती है।