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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि आजतक चाहे जो और चाहे जितने व्यक्ति कांग्रेसके प्रतिनिधि बन सकते थे; अब ऐसा नहीं हो सकता। अब हिन्दुस्तानकी एक लाख आबादीके पीछे दो व्यक्ति ही प्रतिनिधि बन सकेंगे अर्थात् सारे देशके लगभग छः हजारसे अधिक प्रतिनिधि नहीं हो सकते।[१] मेरे विचारानुसार तो यह संख्या भी ज्यादा है। इसका एक दुष्परिणाम तो यह होगा कि जहाँ कांग्रेसका अधिवेशन होगा वहाँके प्रतिनिधि तो पूरी संख्या में भाग ले सकेंगे लेकिन दूरस्थ प्रान्तोंके ज्यादा प्रतिनिधियोंको भेजना मुश्किल बात होगी। तथापि इतना लाभ तो अवश्य है कि एक निश्चित सीमा निर्धारित कर दी गई है। चुनाव करवानेकी पद्धतिमें परिवर्तन किया गया है। अबसे लाखों व्यक्तियोंकी पसन्दपर ही प्रतिनिधियोंका चुनाव होगा और इसमें मुसलमानों, स्त्रियों और अन्त्यजोंके, जो अबतक भाग नहीं ले सकते थे, भाग लेनेकी व्यवस्था करके इसे अनिवार्य बना दिया गया है। कांग्रेसके किसी भी मण्डलमें शामिल होनेके इच्छुक व्यक्तिको चार आना शुल्क देने और कांग्रेसके उद्देश्योंको स्वीकार करनेपर शामिल होनेकी अनुमति दी गई है। प्रत्येक पक्षके लोग चुने जा सकें इस उद्देश्यसे ऐसी व्यवस्था की गई है कि एक व्यक्ति एक ही मत दे। यदि किसी उम्मीदवारको उस मतकी जरूरत न हो तो वह दूसरे उम्मीदवारको दिया जा सकता है। प्रान्तोंके हिस्से भी भाषाके आधारपर ही किये गये हैं। कांग्रेसके इस संविधानके अनुसार अगर प्रत्येक प्रान्तसे काम लिया जाये तो सिर्फ इसीसे हम बहुत आगे बढ़ सकते हैं, क्योंकि जहाँ हममें संघशक्ति और योजनाशक्तिका विकास हुआ वहाँ हमें स्वराज्य मिला ही समझिए, इसके लिए मुख्य रूप से जनताके एक-एक वर्ग में राष्ट्रीय भावना पैदा करने की जरूरत है।

शान्तिमय असहयोगका प्रस्ताव पास करके कलकत्ता में हुई विशेष कांग्रेसके प्रस्तावकी पुष्टि कर दी गई है[२]और उसमें कुछ और बातें भी जोड़ दी गई हैं। इस प्रस्तावको पसन्द करनेवालोंके लिए यह जरूरी हो गया है कि वे निम्नलिखित बातोंपर अमल करें।

१. जिन लोगोंके पास खिताब हैं वे अपने खिताबोंको छोड़ दें।

२. माँ-बाप वर्तमान सरकारके अन्तर्गत चलनेवाले स्कूलोंसे अपने बच्चोंको निकाल लें और उनके लिए अपने घरोंमें अथवा राष्ट्रीय स्कूलोंमें किसी किस्मकी व्यवस्था करें।

३. सोलह वर्षकी आयुके विद्यार्थियोंको अगर इस बातका विश्वास हो गया हो कि जिस सरकारको सुधारने, अथवा समाप्त करनेका जनताने निश्चय किया है उस सरकारके अधीन पढ़ना पाप है तो उन्हें तुरन्त स्कूलोंको त्याग करके मनोनुकूल प्रबन्ध कर लेना चाहिए।

४. वकील जितनी जल्दी हो सके वकालतके धन्धेको छोड़ दें और जनताकी सेवामें जुट जायें।

 
  1. पुराने संविधानके अन्तर्गत १४,५८२ प्रतिनिधियोंने नागपुर कांग्रेसमें भाग लिया था।
  2. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ २४७-४८।