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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पारिश्रमिकके ‘यंग इंडिया’ के लिए एक सालसे अधिक समय तक उप-सम्पादकके रूपमें काम किया। वे कांग्रेस[१] अधिवेशनमें शामिल हुए थे, और अब शोलापुरमें असहयोगके लिए काम करने के उद्देश्यसे वहाँ जानेकी तैयारी कर रहे थे। किन्तु ईश्वरकी इच्छा कुछ और ही थी। पिछले कुछ समयसे वे रुग्ण थे, लेकिन हमने आशा यही की थी कि वे शीघ्र ही स्वस्थ हो जायेंगे। लेकिन कांग्रेस अधिवेशनके समय ही अचानक उनका स्वास्थ्य फिर बिगड़ गया और इसबार वे खाट नहीं छोड़ पाये। उन्होंने ‘भगवद्गीता’ के दूसरे अध्यायके अन्तिम श्लोकोंका जप करते हुए शरीर-त्याग किया। बहुतसे हैम्डन[२], राष्ट्रके बहुत-से मूक और सच्चे निर्माता, इसी तरह संसारसे चले जाते हैं। मैं पटवर्धन को “शुद्ध, सात्विक किरणोंकी आभा बिखेरनेवाला रत्न” ही मानता था। उनके मित्रगण उनकी योग्यतासे परिचित थे। ईश्वर उनकी आत्माको शान्ति दे।

[अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १२-१-१९२१
 

१११. टिप्पणियाँ

‘सबसे कृतघ्न आदमी’

हम अन्यत्र श्री एडवर्ड फॉयका पत्र दे रहे हैं।[३]यह पत्र भी उन पत्रों जैसा ही है जैसे अंग्रेज लोग मुझे अक्सर लिखते रहते हैं। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि पत्र लिखने वाले सज्जनने जो-कुछ लिखा है, वे अपने मनमें उसीपर विश्वास भी करते हैं। यह दुःख की बात है कि ब्रिटिश शासनके सम्बन्ध में किसी भी सामान्य अंग्रेजके विचार मेरे, और मेरा खयाल है, हर सामान्य भारतीयके विचारोंसे भिन्न हैं। मैं नहीं समझता कि मैं कुछ विशेष कृतघ्न स्वभावका आदमी हूँ। सच तो यह है कि किसीकी तनिक-सी कृपा भी मुझे कृतज्ञतासे भर देती है। मैं किसीको दोषी भी जल्दी ही नहीं मान लेता ; फिर भी, मुझे कृतज्ञता प्रकट करने योग्य कोई बात ब्रिटिश शासनमें दिखाई नहीं देती। अगर अंग्रेजोंने जर्मनोंसे लड़कर उन्हें रोका न होता तो भी मेरी समझमें

  1. दिसम्बर १९२० में नागपुर में आयोजित कांग्रेसके ३५वें अधिवेशन में।
  2. जॉन हैम्डन (१५९४-१६४३); एक अंग्रेज देशभक्त।
  3. यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। लेकिन, उससे सम्बद्ध कुछ अंश इस प्रकार हैं: “मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है...कि आप दुनिया के सबसे कृतघ्न आदमी हैं...अगर भारतको जर्मनीके फौलादी शिकंजेसे बचानेवाली ब्रिटिश सरकार न होती तो आज आपकी क्या दशा होती? हिन्दू धर्म और इस्लाम, दोनोंको समाप्त कर देना चाहती है...यह बात बिलकुल गलत है...आप झूठमूठ अहिंसाकी बात करते हैं, लेकिन आपके मनमें ठीक इससे उलटा भाव है... आप असहयोगकी असफलताको छिपानेके लिए हिंसाको उभारनेकी कोशिश कर रहे हैं। आप शान्तिके शत्रु हैं,...इस अन्तिम घड़ीमें भी सूझ-बूझसे काम लीजिए और सारा आन्दोलन बन्द करके... सुधारोंको सफल बनाने में सरकारके साथ सहयोग कीजिए,...क्योंकि ये सुधार ही भारतको जल्दीसे-जल्दी स्वराज्य दिला सकते हैं।” यंग इंडिया,१२-१-१९२१।