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आन्दोलनके लिए धन कहाँसे लाया जाये

दुनियाकी कोई ताकत हमारे उद्देश्यको विफल नहीं कर सकेगी। कुछ ही हजार निःस्वार्थ, ईमानदार और मेहनती कार्यकर्त्ताओंकी मददसे, ऊपर बताय हुए तीनों कामोंको बगैर किसी खास मुश्किलके पूरा किया जा सकता है।

लेकिन इस लेखमें तो मैं आर्थिक कठिनाइयोंके बारेमें विचार करना चाहता हूँ। अखिल भारतीय तिलक स्मारक स्वराज्य-कोष इतना बड़ा तो होना ही चाहिए कि उससे राष्ट्रीय संस्थाओं और आन्दोलनकी सारी जरूरतें पूरी हो सकें। इस काममें देशके हजारों धनवानोंके सहयोगका हम स्वागत करते हैं, फिर भी हमारा असली सहारा तो आम जनतासे मिलनेवाला एक-एक पैसा ही है। समझ-बूझकर दिया हुआ हर पैसा देनेवालेके स्वराज्य स्थापित करनेके निश्चयका प्रतीक होगा। मैं तो यहाँ तक कहना चाहता हूँ कि राष्ट्रकी जनता अपनी बेकारकी जरूरतों, बुरी आदतों और दुर्गुणोंका परित्याग कर दे तो केवल इसीसे आन्दोलनके लिए जरूरी धनका प्रबन्ध हो सकता है।

अगर भारतीय महिलाएँ अपने बेकारके गहने राष्ट्रको सौंप दें, अगर शराबी शराब पीना छोड़कर उस पैसे का आधा आन्दोलनको दे दें, अगर तम्बाकू पीनेवाले देशके स्वतन्त्र होने तक धूम्रपान न करें और बचतका आधा पैसा इस कामके लिए दे दें तो आन्दोलनको सफलतासे पूरा करनेके लिए जितना धन जरूरी है, हमें मिल जायेगा। मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि मध्यप्रान्तमें शराबखोरीके खिलाफ बड़ा भारी आन्दोलन चल रहा है। मैं समझता हूँ कि उस आन्दोलनकी वजहसे हजारों शराबियोंने इस बुरी लतसे छुटकारा पा लिया है। अगर शराबकी लतको मिटानेके लिए कोई संगठित प्रयत्न किया जाये तो वह असहयोगकी बहुत बड़ी जीत होगी। मुझे पूरा विश्वास है कि जिन लोगोंकी यह बुरी लत छुड़ाई जायेगी वे इससे होनेवाली बचतका एक भाग खुशी-खुशी और कृतज्ञताके साथ आन्दोलनके लिए दे देंगे।

हम लोग गरीब हैं और दिनोंदिन ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं। इसलिए अगर हमें आम जनतामें से धन-संग्रह करना है तो आत्म-निरोधके द्वारा ही हम यह काम कर सकते हैं। कुछ-न-कुछ तो हमेशा ऐसा रहता ही है जिसे हम देशके लिए छोड़ सकते हैं। बिना किसी हिचकिचाहटके मैं धर्मपरायण लोगोंको यह सुझाव देता हूँ कि अगर वे अपनी दानशीलताका उपयोग स्वराज्यका मन्दिर बनानेके लिए करें, तो उसका इससे ज्यादा अच्छा उपयोग दूसरा हो ही नहीं सकता। कांग्रेसकी महासमिति द्वारा नियुक्त कार्यसमिति धन-संग्रहकी कोई तजवीज जरूर पेश करेगी। लेकिन मैं स्वयंसेवी कार्यकर्त्ताओंसे कहूँगा कि वे आम जनतामें आत्म-निरोधकी आदत डालकर उस योजनाकी सम्पूर्ति कर सकते हैं।

इस दिशामें अलग-अलग प्रान्तोंके बीच स्वस्थ प्रतियोगिता होनी चाहिए।

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, १२-१-१९२१