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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया और अन्तमें राज्यकी स्थापना की। हम जबतक पश्चात्ताप नहीं करते, बाप-दादोंपर हुए अत्याचारोंका प्रायश्चित नहीं करते तबतक हम स्वराज्य कैसे ले सकते हैं? अत्याचारीको दण्ड देकर हम उसे कदापि प्राप्त नहीं कर सकते। दण्ड देनेकी पद्धतिका हमें त्याग करना होगा। दूसरेको दण्ड देकर नहीं वरन् आत्मशुद्धिसे ही शक्ति प्राप्त करके हमें अंग्रेजोंको राज्य करनेसे रोकना चाहिए। हमारी अपवित्रताके कारण ही वे राज्य कर रहे हैं; कर पा रहे हैं——ऐसा अगर तुम मानते हो और केवल निर्मल साधनोंके द्वारा ही स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हो तो क्या करना चाहिए? प्रायश्चित्त करना चाहिए, छोड़े हुए कातनके धन्धेको फिरसे हाथमें ले लेना चाहिए। तुम कहोगे कि यह कार्य तो स्त्रीवर्गका है। उससे हम कातनेके लिए कहनेको तैयार हैं। मैं कहूँगा कि इतने- भरसे काम नहीं चलेगा। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने पंजाबकी स्त्रियोंकी इज्जतको लुटते देखा; इसका प्रायश्चित् भी हम पुरुष कातनेके द्वारा ही कर सकते हैं। हमें कातनका धन्धा अपना धन्धा छोड़कर नहीं अपनाना है वरन् फुरसतके समयका धन्धा मानकर इसे अपनाना है और इस तरह हिन्दुस्तानका उद्धार करना है। हमारा प्रायश्चित्त पूरा तो तभी होगा जब स्त्री, पुरुष और बच्चे सब कातने लगेंगे। ब्रिटिश मालका बहिष्कार करनेके हिमायती लोग लंकाशायरको पछाड़नेके लिए बहि- ष्कारकी बात करते हैं लेकिन दूसरोंको पछाड़नेकी बात करनेकी अपेक्षा मुझे यह करना अधिक अच्छा लगता है कि कोई हमें पछाड़ न सके। जापान, विलायत और अमेरिकाका रास्ता यदि बन्द करना हो तो हमें अपनी जरूरतका सारा कपड़ा अपने घर ही तैयार कर लेना चाहिए। जबतक हम सूतका उत्पादन नहीं करेंगे, तबतक हम अपनी जरूरतके लायक कपड़ा नहीं बन पायेंगे। अनुभवी व्यापारियोंका कहना है कि यदि हम अपनी आवश्यकताका सब कपड़ा मिलोंकी मार्फत प्राप्त करना चाहते हैं तो उतनी मिलोंको स्थापित होनेमें पचास वर्ष लगेंगे। तब नौ मासमें यह कार्य कैसे सधेगा? मिलोंसे तुम कदापि करोड़ों व्यक्तियोंका उद्धार नहीं कर सकोगे, जो अनेक भाई और बहन नंगे फिरते हैं उनका शरीर नहीं ढंक सकोगे। कोई भी राष्ट्र सिर्फ खेती-बाड़ीपर निर्भर नहीं रह सकता। खेतीके साथ-साथ किसी सहायक धन्धेकी आव- श्यकता रहती ही है। वह धन्धा कताई-बुनाईका है। उसका जबतक हम पुनरुद्धार नहीं करते, उसमें पारंगत नहीं हो जाते तबतक कोई और दूसरी शिक्षा व्यर्थ है।

यह सब कहकर मैं सिद्ध करना चाहता हूँ कि यदि यह बात तुम्हें सच जान पड़ती हो——और राष्ट्रीय कांग्रेस महासभाने एक प्रस्ताव पास करके इस बातकी सचाईको खुले रूपमें मान लिया है——तो हमें इस समय क्या करना चाहिए? यदि नौ महीनोंमें स्वराज्य प्राप्त करना हो तो विद्यार्थियोंके लिए सच्ची विद्या यही है कि वे हिन्दुस्तानसे कपड़ेका अभाव मिटायें। आज हिन्दुस्तानमें कपड़ेका जितना अभाव है उतना अनाजका नहीं है। इस कपड़ेके कारण प्रतिवर्ष देशसे साठ करोड़ रुपये बाहर चले जाते हैं। हिन्दुस्तान आज चालीस करोड़ पौंड सूत बाहरसे मँगवाता है। इतना सूत हमें घरमें ही कात लेना चाहिए। बुनकरोंकी हमारे यहाँ कोई कमी नहीं है, कमी तो आज कातनेवालोंकी है। बुनकरोंकी संख्याके ठीक-ठीक आँकड़े मुझे अभी नहीं मिले हैं