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भाषण : गुजरात महाविद्यालयके विद्यार्थियोंके समक्ष

लेकिन उनकी संख्या पचास लाख अथवा उससे भी अधिक है। यदि इस पैसेको बचाना हो तो हमें आज ही सूत कातना आरम्भ कर देना चाहिए। साठ करोड़ रुपयेका व्यापार देशमें ही करनेसे कितने व्यक्तियोंको रोजी मिलेगी, इसपर विचार करो। कपड़ेका घी की तरह उपयोग करना चाहिए। हमारी ऐसी स्थिति नहीं है कि हम चाहे जितना कपड़ा उपयोगमें लायें। यदि एक ही पोशाकसे काम चले तो हमें दूसरी पोशाक नहीं पहननी चाहिए। छोटी धोतीसे निर्वाह हो सके तो लम्बी धोती नहीं पहननी चाहिए। साठ करोड़ रुपयेकी बचत करनेकी खातिर इतना ही बड़ा बलिदान करना होगा।

विद्यार्थी यदि इस साल पूरे समय इस कामको हाथमें ले लें तो महासभाके प्रस्तावानुसार एक वर्षके अन्दर ही स्वराज्यकी प्राप्ति हो सकती है। लेकिन इसके लिए बहुत ज्यादा प्रयत्न करनेकी आवश्यकता है। अमुक शर्तोंके पूरा होनेके बाद तुम अपने ध्येयको प्राप्त कर सकते हो। विद्यार्थी अपने अध्ययनको छोड़कर हिन्दुस्तानके निमित्त मजदूर बनें। अपने श्रमके बाद अगर तुम कोई पारिश्रमिक न लो तो यह तुम्हारी मेहरबानी है लेकिन जो लेना चाहें, वे खुशीसे ले सकते हैं।

यदि मैं तुम्हें सलाह देने योग्य हूँ तो मैं तुम्हें सलाह दूँगा कि तुम अपने कालेजोंको छोड़ दो। स्वराज्यके लिए चल रही लड़ाईमें अगर तुम पूरा-पूरा भाग लेना चाहते हो तो हिन्दके लिए जितना सूत कात सको, कातो। रोज छः घंटे और अगर इतना सम्भव न हो तो कमसे-कम चार घण्टे सूत कातो। तुम पढ़ाई बिलकुल ही छोड़ दो, ऐसा मेरा आग्रह नहीं है। छोड़ दोगे तो उससे तुम्हारी विचारशक्ति कम हो जायेगी, ऐसा भी मैं नहीं मानता। जिसका मन मलिन नहीं है उसकी विचारशक्ति कभी मन्द नहीं पड़ती। मेरा अपना तो यह अनुभव है कि जब मैं जेलमें था और जब मुझे पढ़नेको एक भी पुस्तक नहीं मिलती थी तब मैं अधिक विचार कर पाता था। हमारा दिमाग पढ़-पढ़कर सड़ गया है। इसीसे मैंने तुमसे कहा है कि तुम छः घंटे सूत कातो और बाकी समयमें पढ़ो। तुमसे तो मैं यह भी कहता हूँ कि तुम कातनेके इस काममें पारंगत हो जाओ तो तुम गाँवोंमें भी जा सकते हो। तुममें इतना आत्म-विश्वास न हो तो तुम कालेजमें बने रह सकते हो। लेकिन मेरा तो इतना दृढ़ विश्वास है कि सब लोगोंके प्रतिदिन चार-छः घण्टे सूत काते बिना हमें स्वराज्य नहीं मिल सकता। एक महीनेमें, बहुत हुआ तो तीन महीनोंमें तुम कातना सीखकर गाँवोंमें जानेके लिए तैयार हो जाओगे और वहाँ उसका प्रचार कर सकोगे। सूतके अभावको मिटाकर हम हिन्दुस्तानको जितना आगे ले जा सकेंगे उतना किसी अन्य चीजसे नहीं ले जा सकते। और फिर अब तो हमें कांग्रेसके संविधानके अनुसार मतदाताओंको तैयार करवाना है; अगर हम इस कार्यको हाथमें न लेंगे तो यह कैसे होगा? गुजरातके गाँवोंमें आज मैं क्या सन्देश पहुँचा सकता हूँ? अंग्रेजोंको गाली देनेके लिए कहूँ? अथवा उन्हें तलवार और बन्दूक दूँ? मेरा सन्देश आज यह है कि सब सूत कातनेके कार्यमें जुट जाओ। गाँवका कोई भी व्यक्ति अहमदाबादसे कपड़ा खरीद कर ले जाता है तो मुझे बहुत दुःख होता है। मेरा स्वदेशी धर्म यह है कि प्रत्येक गाँव अपनी जरूरतकी चीजें स्वयं तैयार कर ले। इस प्राचीन प्रथाको यदि हम फिरसे वापस ला सकें तो इस हिन्दुस्तानपर कोई अपनी कुदृष्टि नहीं डाल सकेगा। मैं आचार्य और अध्या-